...प्रत्येक भारतीय को ईमानदार होगा पड़ेगा...
आज भारत विश्व की उभरती हुई आर्थिक शक्ति के रूप में अपनी पहचान बना रहा है, परंतु देश अभी भी बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा इत्यादि से जूझ रहा है, इन सब समस्याओं की जड़ में 'भ्रष्टाचारÓ की समस्या है। आज इससे देश सत्रस्त है, देश में भ्रष्टाचार का रोग 'कैंसरÓकी तरह फैलता जा रहा है। बच्चे के 'जन्म प्रमाण-पत्रÓ से लेकर 'मृत्यु प्रमाण-पत्रÓ के लिए हर कदम पर भ्रष्टाचार से दो-चार होना पड़ता है। भ्रष्टाचार के इस माहौल के खिलाफ जनता जिस तरह उठ खड़ी हुई थी, वह गांधी युग की याद दिला गया। जनता का गुस्सा राजनीतिज्ञों के खिलाफ फूट रहा है। गरीबी महंगाई,भ्रष्टाचार से जूझ रही जनता में जो आक्रोश है उसी की प्रतिछाया इस आंदोलन में दिखी थी।
सरकार ने अन्ना हजारे के 'विरोध प्रदर्शनÓ के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और 'लोकपाल कानूनÓ का मसौदा तय करने के लिए ड्राफ्ट कमिटी में सिविल सोसायटी के सदस्यों को शामिल करने के लिए मजबूर होना पड़ा। वास्तव में यह स्थिति एक दिन में ही निर्मित नहीं हुई है। भ्रष्टाचार देश की जड़ों तक फैला है। वजह है उसके प्रति हमारी मौन स्वीकृति। जब माता-पिता अपनी बेटी के लिए वर ढूंढते हैं तो लड़के की ऊपरी कमाई को महत्व देते हैं। यह पूछते है कि लड़के की दो नंबर की कमाई है या नहीं? कोई मां यह नहीं चाहती कि उसकी बेटी की शादी शराबी से हो, लेकिन लड़के की 'ऊपरी कमाईÓ है तो उसके लिए मां की मौन स्वीकृति होगी। मंदिर में जाते हैं और भगवान से अपने फायदे का निश्चित प्रतिशत चढ़ाने की बात कहकर मन्नत मांगते हैं, उतना मुनाफा होने के बाद वह हिस्सा बकायदा चढ़ाते भी हैं। पंडित को पैसे देकर दर्शन करना अर्थात पैसा खिलाकर भगवान तक पहुंचने में कोई खराबी नहीं मानते। जब हम भगवान के साथ सौदेबाजी कर रहे हैं तो इंसान की तो क्या हैसियत है। भ्रष्टाचार ने पूरे राष्ट्र को अपने आगोश में ले लिया है। वास्तव में भ्रष्टाचार के लिए आज सारा तंत्र जिम्मेदार है। एक साधारण भारतीय किसी भी शासकीय कार्यालय में अपने कार्य शीघ्र करवाने के लिए सामने वाले को बंद लिफाफा थमाने को तैयार है।
भ्रष्टाचार में सिर्फ शासकीय कार्यालयों में लेने देने वाले घूस को ही शामिल नहीं किया जा सकता। वरन इसके अंदर वह सारा आचरण शामिल होता है जो एक सभ्य समाज के सिर को नीचा करने में मजबूर कर देता है। भ्रष्टाचार के इस तंत्र में आज सर्वाधिक प्रभाव राजनेताओं का ही दिखाई देता है। हमारे समाज में भी ईमानदार है, लेकिन बेईमानों की भीड़ में वे दब गए है उन्हें सामने लाकर आंदोलन चलाने की आवश्यकता है। फिर भी 'अन्नाÓ का आंदोलन विश्वास दिलाता है कि आने वाले समय में हमारे नेता सुधरने का प्रयास करेंगे वरना वह समय दूर नहीं जब भ्रष्ट लोग सड़कों पर पीटे जायेंगे। अन्ना हजारे के आंदोलन के फलस्वरूप एक बार देश भ्रष्टतंत्र के बारे में सोच रहा है। आज समय है हमें अपनी आत्मा को भी भ्रष्टाचार से दूर करना होगा। अगर 'नव भ्रष्टाचार विहीन भारतÓ चाहिए तो प्रत्येक भारतीय को ईमानदार होना पड़ेगा।
...शुभकामनाएं सहित...
अप्रैल-2011