भ्रष्टाचार मुक्त समाज व राष्ट्र का निर्माण...
अन्ना हजारे सेवा-निवृत्त सैनिक जिन्होंने 1965 के युद्ध में हिस्सा लिया था. समाज सुधारक। इन्होंने महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के रालेगांव सिद्धि नामक गांव की काया पलट दी। यह स्व-पोषित गांव के रूप में एक मॉडल है। यहाँ के सोलर पावर, बायोफ्य़ूल तथा विंड मिल में गांव की जरूरत जितनी बिजली पैदा कर ली जाती है। 1975 में यह गांव बेहद गरीब था। आज यह देश के सर्वाधिक समृद्ध गांवों में से एक है. यह स्व-पोषित (सेल्फ सस्टेन्ड), पर्यावरण-प्रेमी तथा भाईचारा युक्त मॉडल गांव बन चुका है। अन्ना हजारे को उनके सामाजिक कार्यों के लिए पद्म भूषण की उपाधि से नवाजा गया है।
अन्ना हजारे व उनके सहयोगी भारत में भ्रष्टाचार रोकने हेतु नया प्रभावी कानून पास करवाने के लिए। वे नए लोकपाल बिल की वकालत कर रहे हैं. यह बिल राजनीतिज्ञों (मंत्रियों), अफसरों (आईएएस/आईपीएस) इत्यादि को उनके भ्रष्ट कार्यों की सज़ा दिलाने में सक्षम होगा। 1977 में तत्कालीन कानून मंत्री शांति भूषण ने यह बिल प्रस्तावित किया था। तब से राजनीतिज्ञ इसे दबाए बैठे हुए हैं और इसमें मनमाना संशोधन कर अपने अनुकूल बनाने में लगे हुए हैं। लोकपाल की नियुक्ति केंद्र सरकार करेगी। वह इलेक्शन कमिश्नर की तरह ऑटोनोमस कार्य करेगा, किसी सरकारी संस्था के अधीन नहीं. हर राज्य में लोकपाल होगा। उसका काम सिर्फ यही होगा कि भ्रष्टाचार की रोकथाम करे और भ्रष्ट लोगों को 1-2 वर्ष के भीतर ट्रायल कर सजाएँ दे।
जन लोकपाल बिल को लेकर सारे भारत वर्ष में शोर मचा रहा है, न्यूज चैनल्स, न्यूज पेपर्स, वेबसाईट, ब्लाग्स, फेसबुक, ट्वीटर, पत्रिकाओं, चर्चा मंचों तथा आमजन में बहस का मुद्दा बना हुआ है, जन लोकपाल बिल को लेकर चर्चा व चिंता जायज है किन्तु ऐसा देखने, सुनने, पढऩे में आ रहा है कि जन लोकपाल बिल को लेकर जो चर्चा होनी चाहिए वह चर्चा का मूल केंद्र बिंदु न होकर मुद्दे से भटकाव की ओर है ! जन लोकपाल बिल को लेकर अब तक जो चर्चा देखने, सुनने, पढऩे में मिल रही है उससे ऐसा अनुभव होता है कि यह बिल भ्रष्टाचार के विरुद्ध न होकर देश के संचालन को लेकर है, परंतु वास्तव में जन लोकपाल बिल देश के संचालन को लेकर नहीं है और न ही इसका हस्तक्षेप देश के प्रजातांत्रिक संचालन पर नकेल कसने को लेकर है, यह जन लोकपाल बिल स्पष्टरूप से, मूलरूप से भ्रष्टाचार के नियंत्रण को लेकर है। जन लोकपाल बिल को लेकर उपजी या उपजाई जा रही भ्रांतियों महज दुष्प्रचार है कि यह बिल पारित होते ही देश का प्रजातांत्रिक ढांचा चरमरा जाएगा और जन लोकपाल के पद पर बैठा व्यक्ति देश का सर्वे-सर्वा बन जाएगा, हिटलर बन जाएगा, तानाशाही करने लगेगा, ऐसा कतई नहीं होगा और न ही ऐसा होने की कोई गुंजाईश होगी । जन लोकपाल के पद पर बैठे व्यक्ति को लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के संचालन में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं होगा, जब हस्तक्षेप का अधिकार नहीं होगा तब वह किस अधिकार से हस्तक्षेप का प्रयास करेगा, यह महज दुष्प्रचार करने वाली बातें हैं। देश में संचालित कार्यपालिका, व्यवस्थापिका व न्यायपालिका के संचालन व नियंत्रण पर जन लोकपाल का कोई अधिकार व हस्तक्षेप नहीं होगा, अधिकार होगा तो सिर्फ इन व्यवस्थाओं में हो रहे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने पर होगा, भ्रष्टाचारियों को दण्डित करने पर होगा । लोकतंत्र के किसी भी अंग को भ्रष्टाचार व दुराचार करने की आजादी लोकतंत्र नहीं कही जा सकती, और यदि लोकतंत्र के किसी भी अंग में भ्रष्टाचार फल-फूल रहा है तो उसके जिम्मेदार लोगों को दण्डित होना ही चाहिए फिर चाहे वे कार्यपालिका के हों, व्यवस्थापिका के हों या न्यायपालिका के । देश में बढ़ रहे निरंतर भ्रष्टाचार व घोटालों ने निश्चित ही देश को शर्मसार किया है कामनवेल्थ घोटाला, टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला, आदर्श सोसायटी घोटाला ऐसे घोटाले हैं जिन्होंने भ्रष्ट सरकारों की कलई खोल कर रख दी है। अपने देश में भ्रष्टाचार व घोटालों की निरंतर बाढ़ आई हुई है, आमजन का जीना दुश्वार हुआ है, लोकतंत्र के सभी अंगों में भ्रष्टाचार जग जाहिर हैं, इन विकराल परिस्थितियों में जन लोकपाल बिल एक उम्मीद की किरण बनकर हमारे सामने है, सरकारों, जनप्रतिनीधियों, नौकरशाहों, बुद्धिजीवियों व समस्त मीडिया जगत को जन लोकपाल बिल का समर्थन करना चाहिए जिससे भ्रष्टाचार मुक्त समाज व राष्ट्र का निर्माण हो सके ।
...शुभकामनाओं सहित...
जुन-2011