बिटियां...
हमारे पुराणों में नारी को देवी का दर्जा देते है, भगवान शिव को अद्र्धनारीश्वर कहते है, पर समाज स्त्रियों को पुरुषों के बराबर तो क्या उसके मानसी का भी दर्जा देने को तैयार नहीं है। आज के परिवेश में देखें तो 'कन्या जन्मÓ पाप के समान है, देहज सामाजिक अपराध है। यह अपराध बराबर हो रहा है, प्रत्येक दिन कोई न कोई महिला इस प्रथा का शिकार हो रही है। इस वातावरण में कन्या भू्रण हत्या किस प्रकार रुकेगी क्या कानून के डर से ही यह कैंसर खत्म हो जायेगा, कदापि नहीं पूरे समाज की बुनावट बदलनी होगी।
21वीं शताब्दी में नारी अपने अस्तित्व को तलाश रही है, आज भी नारी अपने अधिकारी से वंचित है। उसके लिए बनाये गये सारे नियम-कायदे कानूनी किताबों में दफन है। संविधान का अनुच्छेद 14 से 18 में स्त्री और पुरुष को समानता का अधिकार दिया गया है। अनुच्छेद 15(1) तथा 15(2) में धर्म, मूल, वंश जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर विभेद अर्मान्य है। इसमें महिला और पुरुष दोनों को सामान रूप से जीविका का निर्वाहन हेतु पर्याप्त साधन उपलब्ध करने की चर्चा की गई है, लेकिन अनुच्छेद 15(3) कहता है कि स्त्रियों की दयनीय स्थिति कुरीतियों के कारण होने वाले उत्पीडऩ बाल विवाह तथा बहु विवाह आदि के कारण शोषण की स्थिति में राज्यों को उनके लिए विशेष प्रबंध तथा विशेषाधिकार दिया जाना चाहिये।
स्पष्टत: जहां भी आधी आबादी को सामाजिक, पारिवारिक तथा स्वस्थ्य संबंधी सुरक्षा के प्रश्न थे संविधान ने उन्हें पुर्णत: सुरक्षित किया है। परंतु हमारे समाज की मानसिकता कहां जा रही है। नारी अपमान, अत्याचार एवं शोषण के अनेकानेक निंदनीय कृत्यों से ग्रस्त समाज में सबसे दुखद कन्या भू्रण हत्या से संबंधित अमानवीयता अनैतिकता और क्रृरता की वर्तमान स्थिति हमारे देश की ही है। उस देश की जिसे धर्म प्रधान देश, अहिंसा व अध्यात्किता का प्रेमी देश और नारी गौरव गरिमा का देश होने पर गर्व है। कन्या भू्रण हत्या में बच गई तो बाद में न जाने किस छोटी सी गलती के कारण अपने संरक्षक पति या अन्य परिवार के सदस्यों के द्वारा मौत के घाट उतार दी जाये। अगर योग्य है और बड़ी होकर नौकरी कर रही, वहा उसका आत्मिक शोषण हो रहा है,यदि कोई महिला इनके विरुद्ध खड़ी हो जाती है तो सम्पूर्ण समाज की प्रताडऩा सहनी पड़ती है।
समाज की सोच को बदलना होगा। लिंग आधारित भेदभाव जैसे बेटे से ही वंश चलता है। वंश चलना अर्थात् व्यक्ति विशेष के गुण धर्म अगली, पीढ़ी को हस्तारित करना आज के वैज्ञानिक युग में यह सोच बेबुनियादी है, विज्ञान ने सिद्ध कर दिया कि व्यक्ति विशेष के गुण धर्म 'जीनसÓ के द्वारा अगली पीढ़ी में हस्तांरित होते हैं। पुत्र या पुत्री दोनों समान रूप से 'जीनसÓ के वाहक होते हैं, प्राकृतिक ने इसमें किसी भी प्रकार से भेदभाव नहीं किया है। परिवार व समाज के निर्णय में महिलाओं की आवाज को दोयम दर्जे पर रखने की मानसिकता से मुक्त हुए बिना, नारी कि अस्मिता नहीं बचाई जा सकती है। नन्हीं बिटियों के सुरक्षित भविष्य की....
...शुभकामनाएं सहित...
सितंबर-2011