पर्यावरण शिक्षा...

पर्यावरण शब्द का निर्माण दो शब्दों परि+आवरण से मिलकर हुआ है। 'परिÓ अर्थात् चारो तरफ तथा आवरण का अर्थ है घेरा अर्थात् प्राकृति में जो भी हमारे चारो ओर है वायु, जल, मृदा, पेड़-पौधे, प्राणी आदि सभी पर्यावरण के अंग है।
बढ़ती जनसंख्या व औद्योगिकरण के कारण 'ईको सिस्टमÓ में असंतुलन तीव्र गति से हो रहा है, इसके कारण प्रकृति द्वारा करोड़ों वर्षों की यात्रा के उपरांत बना प्राकृतिक पर्यावरण नष्ट हो रहा है। तीव्र गति से हो रहे जल नम, थल, वायु, ध्वनि आदि के प्रदूषण से समुख प्राकृति कही अपने घुटने न टेक दें? 'ईको सिस्टमÓ एवं मानव जो एक दूसरे पर आश्रित रहा है उसे बनाए रखने के लिए एक विश्वव्यापी अभियान छेडऩा होगा।
शुद्ध पर्यावरण ने सदियों से आज तक सारी सृष्टि को बचाकर रखा है। यदि हम इस ऐसा ही बनाए रखेंगे तभी हमारे निरापद अस्तित्व की आशा की जा सकती है। 'ईको सिस्टमÓ के संतुलन को रखना प्रत्येक मानव की जिम्मेदारी है। हमारे उपनिषदों में कहा गया है कि भू-मंडल का निर्माण भगवान ने किया है। जिसका उद्देश्य मानव मात्र की भलाई ही है। व्यक्ति विशेष को अपने हितों को पूर्ति समप्ति हित को ध्यान में रखकर करनी चाहिए अर्थात् अन्य किसी के अधिकारों का हनन कर अपने स्वार्थ की पूर्ति करना अवाछनीय है। पर्यावरण संरक्षण के लिए नदियों, वृक्षों, पहाड़ों और पृथ्वी को 'पूज्यनीयÓ का दर्जा भारतीय सभ्यता में सदियों पूराना है अर्थात् पर्यावरण संरक्षण प्राचीन भारतीय जीवन का अभिन्न अंग था।
विज्ञान की प्रगति से मनुष्य का आकर्षण आवागमन की सुख-सुविधाओं की ओर बढ़ा है। मगर इन सुख-सुविधाओं से अच्छे जीवन के तौर-तरिकों के साथ अनेकों परेशानियों ने चिंतित भी कर दिया है। इन आधुनिक वाहनों संख्या के कारण वायु प्रदूषण की समस्या बढ़ी है। अत: पर्यावरण-शिक्षा द्वारा हमें छात्रों को बताना चाहिए कि शुद्ध वायु जीवनदायनी है। वायु में बढ़ते प्रदूषण हमारे लिए हानिकारक है। पर्यावरण शिक्षा के द्वारा पर्यावरण संतुलित व संरक्षित रखना जा सकता है।
इसी प्रकार फैक्टरियों के द्वारा निकलने वाले धुएं से पर्यावरण दूषित होता है। अत: पर्यावरण शिक्षा वायु और ध्वनि प्रदूषण से होनेवाली छाती और सांस की बीमारियों, फेफड़ों के कैंसर रोग आदि से अवगत करा सकती है। पर्यावरण शिक्षा में छात्रों को यह समझाया जा सकता है कि विद्यालय एवं अपने घरों के बाहर पेड़-पौधे लगाकर ध्वनि को अवशोषित किया जा सकता है। धार्मिक, समाजिक व्यवाहार जैसे विवाह इत्यादि के अवसर पर डी.जे. व ध्वनि विस्तारक यंत्रों के उपयोग को नियंत्रण करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है व ध्वनि प्रदूषण पर रोक लगाई जा सकती है। पर्यावरण शिक्षा द्वारा बढ़ती हुई जनसंख्या से होने वाले जल-प्रदूषण, वायु-प्रदूषण एवं ध्वनि प्रदूषण के बारे में जानकारी मिल सकती है। बढ़ती जनसंख्या व शहरों के विस्तार के कारण 'पर्यावरण संतुलनÓ खतरे में है। बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए पर्यावरण शिक्षा के अंतर्गत परिवार नियोजन विषय को जोडऩा आवश्यक है। कारखानों द्वारा हानिकारक रसायन छोडऩे व शहर की गंदगी (मल-मूत्र) को नदियों, नहरों इत्यादि जल स्रोत में प्रवाहित करने से जल प्रदूषित होता है। आज 'गंगाÓ जिसका जल अमृत के समान था एक जहरीले नाले में परिवर्तित हो गई है। अत: पर्यावरण शिक्षा के अध्ययन से हम प्रदूषण के कारणों व उनके निदान का प्रयास कर सकते हैं।
शुभकामनाओं सहित...
जून-2012