सर्वांगिण विकास हो...
सर्वांगिण विकास हो...
बच्चे राष्ट्र की अमूल्य धरोहर एवं भावी संसाधन होते हैं। बच्चे किसी भी समाज या राष्ट्र का भव्यिय होते हैं। राष्ट्र के भावी निर्माण के लिए आज के बच्चे के विकास के लिए अवसर प्रदान करना समाज व राष्ट्र की नैतिक जिम्मेदारी है। सरकार द्वारा बचपन को बचाने के लिए अनेकों कानून बनाए गए हैं, परंतु उनका उचित क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। बच्चों के लिए निर्धारित किए गए अधिकार एवं मौलिक अधिकारों का खुले आम उल्लघन किया जा रहा है।
सर्वप्रथम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 1924 में जेनेवा डिक्लेरेशन बच्चों के अधिकार हेतु किया गया था। 1948 संयुक्त राष्ट्र संघ का डिक्लेरेशन हुआ था जिसके अनुसार बच्चों को शारीरिक, मानसिक, नैतिक, धार्मिक एवं सामाजिक विकास के लिए सुरक्षित वातावरण उपलब्ध होना चाहिए। प्रत्येक बालक को जन्म से ही नाम और नागरिकता का अधिकार होगा। मानसिक व शारीरिक रूप से कमजोर बच्चे विशेष सुविधा के अधिकारी होंगे।
भारत के संविधान में बाल कल्याण हेतु अनेकों प्रावधान है। धारा 15 के तहत राज्यों को महिला व बच्चों के लिए विशेष कानूनी प्रावधान करने हेतु अधिकृत किया गया है। धारा 24 कारखाना, दुकान आदि में बच्चों के कार्य करने पर रोक है। धारा 39 ई एवं एस बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा का दायित्व राज्य को देती है। इसके अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने बाल श्रमिकों की सुरक्षा के अनेकों प्रावधान किए है, जैसे 15 वर्ष के नीचे के बच्चों की मजदूरी पर रोक, बाल श्रमिक की सुरक्षा व रात्रि कार्य पर रोक, हानिकारक और खतरनाक कार्यों हेतु 18 वर्ष तक के बच्चों पर रोक। बाल श्रमिकों के लिए अवकाश एवं प्रशिक्षण की इत्यादि की व्यवस्था हो।
सम्पूर्ण विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ के बाल अधिकारों की सुरक्षा एवं विकास के उद्देश्यों की पूर्ति यूनिसेफ द्वारा विभिन्न सरकारी, गैर सरकारी स्वयं सेवाी संस्थाओं के माध्यम से कार्य करती है। यूनिसेफ द्वारा शिक्षा स्वास्थ्य, बाल अधिकारों की जानकारी तथा जागरूकता उत्पन्न की जाती है। इस कामना के साथ कि हम सबके प्रयास से भारत के भविष्य अर्थात् आज के बच्चे के समस्त अधिकारों की रक्षा हो तथा उनका सर्वांगिण विकास हो सकें। शुभकामनाएं सहित...