20 नवंबर 1959 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में की गई बाल अधिकारों की घोषणा पर आधारित संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार अभिसमय में जीवन का अधिकार, राष्ट्रीयता और नाम पाने का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, विवेक और धर्म का अधिकार, गोपनीयता, परिवार- घर या पत्राचार में गैरकानूनी और निरंकुश हस्तक्षेप से सुरक्षा पाने का अधिकार तथा उच्चतम स्वास्थ्य स्तर का उपभोग करने का अधिकार शामिल है।


बच्चे ही किसी भी देश का भविष्य होते हैं तथा उनके विकास पर ही देश की प्रगति की राह तय होती है। इसीलिए जो व्यक्ति 18 वर्ष से कम है तथा उसे देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता है तो वह राज्य से ऐसी सुविधा पाने का अधिकारी है जिससे उसका उचित व्यक्ति विकास हो सके। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1989 में अपनाए गए बाल अभिसमय में सभी बच्चों को जाति, धर्म, रंग, लिंग, भाषा, संपत्ति, योग्यता आदि के आधार पर किसी भी मतभेद के बिना संरक्षण देने का वचन दिया गया है। भारत ने 1992 में बाल अधिकार समझौते पर हस्ताक्षर कर बाल अधिकारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की थी तथा इसके उपरांत इसी प्रयोजन हेतु भारत ने अपने बाल कानूनों में इसी को ध्यान में रखते हुए काफी परिवर्तन किए हैं। 
 भारत की आबादी का 40 प्रतिशत 18 वर्ष से कम आयु का है। यह संख्या लगभग 45 करोड़ है जो संख्या की दृष्टि से विश्व के राष्ट्रों में तीसरे सबसे बड़े देश के रूप में है। स्वाभाविक तौर पर इतनी बड़ी आबादी के कल्याण के लिए सघन प्रयासों की जरुरत है। बालक-बालिकाओं के सामने सबसे बड़ी समस्याएं समुचित स्वास्थ्य एवं शिक्षा व्यवस्था का अभाव, कुपोषण, बाल विवाह, बालश्रम, हिंसा एवं दुव्र्यवहार तथा भविष्य को लेकर असुरक्षा की भावना हैं। पेशेवर यौन शोषण, भिक्षा वृत्ति, मानव अंगों का कारोबार के लिए गैरकानूनी खरीद-फरोख्त और बाल पोर्नोग्राफी की समस्या बाल कल्याण के क्षेत्र में एक नई चुनौेती की तरह सामने आई हंै।
देश में किशोरियों में कुपोषण की समस्या किशोरों की तुलना में अधिक है। एक सर्वे के अनुसार उत्तर भारत में लगभग 50 प्रतिशत किशोरियां कम वजन की शिकार हैं, जबकि किशोर अवस्था प्राप्त करने पर उन्हें अधिक पोषण की आवश्यकता होती है तथा उचित पोषण नहीं मिलने के कारण उनमें अनेक स्वास्थ्य एवं मनोवैज्ञानिक परेशानियां जन्म लेती हंै। स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण ही अनेक किशोरियां विद्यालय जाना बंद कर देती हैं। एक स्वस्थ समाज का निर्माण स्वस्थ युवतियां ही कर सकती है।  किशोरियों को समुचित पोषण आहार देने के संबंध में सामाजिक सोच में परिवर्तन की आवश्यकता है।  
हमारे देश में शिशु मृत्युदर अभी भी लगभग 30  है। प्रति वर्ष पांच वर्ष से कम आयु के लगभग 60 लाख बच्चों की मृत्यु होती है, जिसमें 69 प्रतिशत मौत कुपोषण के कारण होती हंै। 3.2 करोड़ बच्चे किसी भी तरह के विद्यालय में नहीं जाते तथा विद्यालयों में ड्राप आउट की दर 14.6 प्रतिशत है। बालिकाओं के लिए यह दर कहीं अधिक है। 5 से 14 वर्ष के आयु के लगभग 1 करोड़ (3.9 प्रतिशत) बच्चे बालश्रम के रूप में नियोजित हंै। देश में स्कूली बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है तथा एकल परिवारों में बच्चे 'सायबर बुलीइंगÓ का शिकार हो रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के अनुसार देश में बाल अपराधियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यह तथ्य एक सुखद भविष्य की ओर इशारा नहीं करते हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार बाल  अधिकारों के हनन के सर्वाधिक मामले भारत में ही होते हैं। 
बाल कल्याण को दृष्टिगत रखते हुए देश में आंगनबाड़ी योजना, किशोरी योजना, राष्ट्रीय शिशु योजना, बाल संरक्षण सेवा प्रारंभ की गई हंै तथा केंद्र एवं राज्य स्तर पर बाल संरक्षण आयोग भी गठित किए गए हंै।  देश में बाल संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयास अपर्याप्त हैं। देश में बाल संरक्षण कानूनों की कमी नहीं है, परंतु उनके अमल की स्थिति संतोषप्रद नहीं है। देश का सुनहरा भविष्य सुनिश्चित करने के लिए बाल कल्याण की ओर सरकार एवं समाज के स्तर पर बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।
शुभकामनाओं सहित....