बिलासपुर- मंगला में रहे चर्चित पटवारी आलोक तिवारी जिन पर शमशान भूमि सीलिंग भूमि के रजिस्ट्री नामांतरण के आरोप लग चुके हैं उस पटवारी को बैमा नगोई लाने तहसीलदार मोर ने ऐसा कारनामा किया की बिलासपुर हाईकोर्ट के आदेश की ही अवहेलना कर दी। ज्ञात हो कि आलोक तिवारी वर्षों ए अंगद की पाँव की तरह बिलासपुर शहर में पदस्थ थे। मुख्यमंत्री के आदेश के बाद ढाई साल के नियम में आलोक तिवारी को मोपका से हटाकर बसहा भेजा गया था। ११ फ़रवरी को एसडीएम बिलासपुर ने अचानक एक आदेश निकाला जिसमें बेलतरा सर्किल के पटवारी आलोक तिवारी को बैमा नगोई सर्किल के पटवारी हलका बैमा में अतिरिक्त प्रभार दे दिया। इस आदेश से राजस्व महकमें हड़कम्प मच गया है कि हाईकोर्ट के आदेश से अभी अभी किशन धीवर की पोस्टिंग बैमा हुई थी। तो अगर किशन धीवर को हटाना भी था तो आस पास के पटवारी को बैमा नगोई में चार्ज दिया जा सकता था। लेकिन इतने दूर जंगल से नियम विरुध दूसरे सर्किल के पटवारी को आयात कर बैमा में बैठाने की क्या वजह थी। विश्वस्त सूत्रों से खबर मिली है की तहसीलदार रमेश मोर के सबसे ख़ास पटवारी माने जाते हैं आलोक तिवारी। और जंगल भेजे जाते समय तहसीलदार ने वादा किया था आलोक तिवारी को कि उसे वह वापस लाकर रहेंगे।
और आज वादा निभाया भी गया। बिलासपुर तहसील तो पहले से ही विवादित और चर्चित है। इसमें एक कड़ी और जुड़ गयी की मुख्यमंत्री के आदेश को सीधे अवहेलना कर दूसरे सर्किल के पटवारी को दूसरे सर्किल के गाँव में प्रभार दिया गया। जबकि यदि बाजू के ही पटवारी को प्रभार दिया जाता तो बैमा के ग्रामवसियों को ज़ायदा आसानी होता। कांग्रेस नेता अंकित गौरहा ने कलेक्टर से बार बार माँग रखा है कि बैमा में स्थायी पटवारी का नियुक्ति किया जाए। बार बार पटवारी बदलने से और दूर के पटवारी को प्रभार दिए जाने ग्रामवासियों को तकलीफ़ हो रहा है। लेकिन बिलासपुर राजस्व विभाग में जो हो जाए कम ही है।