मावन अधिकार का संबंध उन परिस्थतियों से है  जो मनुष्य को उसकी स्वाभाविक स्थिति तक पहुंचने के लिए अनिवार्य हैं। मानव अधिकार की तरह ही पर्यावरण के बारे में  अंतर्राष्ट्रीय चिंता द्वितीय विश्व युद्ध के बाद देखने को मिली है। महायुद्ध के विध्वंस ने रेखांकित किया था कि आधुनिक हथियार मानव जीवन के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी कितने खतरनाक हंै। औद्योगीकरण एवं शहरीकरण का तेजी से फैलना पर्यावरण के लिए हानिकारक ही साबित हुआ है। 21 जुलाई 2022 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पास कर स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण को एक सार्वभौमिक मानव अधिकार घोषित किया है। 
मानव अधिकार मनुष्य की प्रकृति में निहित हंै तथा किसी रीति-रिवाज, परंपरा, रूढि़, कानून, राज्य, शासक अथवा संस्था की देन नहीं हंै। समय गुजरने के साथ राज्य या कानून इन्हें प्रवर्तन करने वाले माध्यमों के रूप में उभरे हंै। वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में पर्यावरण के बढ़ते संकट के चलते, मानव जाति के सम्मान पूर्वक सुरक्षित जीवनयापन के लिए आवश्यक है कि समस्त नागरिकों को स्वच्छ पर्यावरण युक्त मानव अधिकार संरक्षण प्राप्त हो। 
पर्यावरण हमारे चारों ओर का वातावरण है जिसमें हमारी सारी प्राकृतिक संपदाएं भी शामिल हंै, जिनकी गुणवत्ता प्राणी जीवन तथा अंतत: देश की अर्थव्यवस्था की उत्पादकता को प्रभावित करती है। मनुष्य द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु किए जा रहे पर्यावरण के शोषण के कारण अनेक समस्याएं उत्पन्न हो रही हंै। तीव्र औद्योगीकरण तथा मानव की उपभोक्तावादी नीतियों के चलते वातावरण में ग्रीनहाउस गैसें पृथ्वी के तापमान को तेजी से बढ़ाती जा रही हंै, जिसके कारण विश्व में अनेक पर्यावरणीय आपदाएं बढ़ती जा रही हैं। इसका प्रभाव संपूर्ण जैव विविधता पर पड़ा है तथा अनेक संवेदनशील प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हंै। हमारे देश में ही औसत तापमान प्रति दशक लगभग 0.6 डिग्री बढ़ता चला जा रहा है। विश्व बैंक ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट में भारत  अगले 15- 20 वर्षों में लू का प्रकोप बढऩे की चेतावनी दी है।  इस भीषण गर्मी का दुष्प्रभाव मानव जीवन के साथ-साथ हमारी आर्थिक स्थिति पर भी पड़ेगा। 
वैश्विक ऊष्णता के कारण जलस्त्रोत सूख रहे हैं तथा शुद्ध पेयजल की समस्या बढ़ती जा रही है। बड़े बांधों के निर्माण के कारण डूब प्रभावित क्षेत्रों में नैसर्गिंक संतुलन नष्ट होने के साथ बड़ी संख्या में विस्थापित जनसंख्या भी मानव अधिकार संरक्षण के लिए एक बड़ी चुनौती है। वैश्विक तापमान के बढऩे से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, समुद्री जल स्तर बढ़ रहा है तथा अनेक तटवर्तीय स्थलों के डूब जाने का खतरा उत्पन्न हो रहा है। पहाड़ों की बर्फ पिघलने के कारण भविष्य में नदियों के जलप्रवाह में कमी आएगी, जिसका प्रभाव मानव जीवन एवं कृषि पर पड़ेगा। पर्यावरण में आ रहे परिवर्तन खाद्यान्न उत्पादकता तथा खाद्यान्न सुरक्षा पर विपरीत प्रभाव डाल रहे हंै। रासायनिक कीटनाशकों के अविवेकपूर्ण उपयोग से कैंसर जैसे रोग बढ़ रहे हैं। खनिज खनन के कारण होने वाला प्रदूषण खदानों में काम करने वाले  मजदूरों तथा आसपास के नागरिकों के स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। बढ़ते ध्वनि प्रदूषण का कुप्रभाव चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, श्रवण शक्ति के ह्रास तथा अनेक मनोवैज्ञानिक समस्याओं के रूप में परिलक्षित हो रहा है।  
सुरक्षित मानव जीवन के लिए ऐसे पर्यावरण प्रबंधन की आवश्यकता है जिसमें व्यक्तियों के मानव अधिकार सुरक्षित रहें। पर्यावरण के संरक्षण हेतु देश में बनाए गए कानूनों के पालन में सुधार की आवश्यकता है। हमारे संविधान में वर्णित नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों के अध्याय में भी उल्लेख है कि यह प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा कि वनों, झीलों, नदियों एवं वन्य जीवों सहित समस्त पर्यावरण की रक्षा करे तथा उसे बेहतर बनाए और सभी जीवधारियों के प्रति करूणा रखे।  21 जुलाई 2022 के संयुक्तराष्ट्र  प्रस्ताव से देशों को उनके पर्यावरणीय और मानव अधिकार उत्तरदायित्वों और प्रतिबद्धता के क्रियान्वन में तेजी लाने में मदद मिलेगी। पर्यावरण संतुलन के प्रयासों को और प्रभावी बनाने के लिए जनसाधारण को इसके प्रति जागरूक तथा शिक्षित करने, पर्यावरण संरक्षण के वैज्ञानिक तथा तकनीकी उपाय और वैकल्पिक प्रबंधन की आवश्यकता है। जब प्रत्येक व्यक्ति में पर्यावरण संरक्षण को अपने कर्तव्य के रूप में समझने और पालन करने की भावना आएगी तभी स्वस्थ पर्यावरण की मानव अधिकार के रूप में अवधारणा साकार हो सकेगी। 
 

शुभकामनाओं सहित

मीरा गांधी सिंह