हमारे देश की लगभग 26.6 प्रतिशत जनसंख्या 0-14 आयु वर्ग की है जो लगभग 36 करोड़ होती है। 18 वर्ष के कम आयु के बच्चों की संख्या लगभग 41 करोड़  है। यह जनसंख्या भारत एवं चीन को छोड़कर विश्व के किसी भी देश की जनसंख्या से कहीं अधिक है। स्वाभाविक तौर पर देश की उन्नति के लिए इस वर्ग के  विकास एवं उनकी समस्याओं पर विशेष ध्यान देने एवं देश में चल रही बाल विकास की विभिन्न योजनाओं को और ज्यादा परिणाम मूलक बनाने की आवश्यकता है। 


प्रकाश पर्व दीपावली एवं बाल दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामना
बच्चे किसी भी समाज एवं राष्ट्र की धरोहर होते हैं तथा किसी भी देश के उज्जवल भविष्य के लिए उनका सही एवं समग्र विकास आवश्यक है। अच्छा स्वास्थ्य, अच्छी शिक्षा एवं अच्छा मनोवैज्ञानिक विकास किसी भी व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण होता है। अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार घोषणा-पत्र में भी बच्चों के 41 विश्ष्टि अधिकार दिए गए है।  भारत ने भी 19 दिसंबर 1992 को इस घोषणा पत्र का समर्थन किया।  इन में मुख्यत: कोई भेदभाव नहीं होने, स्वास्थ्य सेवाओं, अच्छा जीवन स्तर, नशीले पदार्थों से बचाव, शिक्षा की व्यवस्था, दुव्र्यवहार से रक्षा, बाल श्रमिकों की सुरक्षा, यौन शोषण से बचाव, बच्चों को भगाने पर रोक, किशोर न्याय प्रबंध एवं विकलांग बच्चों के लिए उचित व्यवस्था संबंधी अधिकार हैं। 
हमारे देश में बालविवाह की कुप्रथा एवं अन्य सामाजिक रूढिय़ों के कारण बालिकाओं के समग्र व्यक्तित्व विकास की समस्याएं और भी जटिल है तथा उनके विकास की ओर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए देश में अनेक कानून बनाए गए हंै तथा बच्चों के समग्र विकास हेतु अनेक कार्यक्रम सरकार द्वारा चलाये जा रहे हैं। बाल विकास की सतत् समीक्षा हेतु प्रत्येक राज्य में बाल आयोग का गठन भी किया गया है। 
देश में बच्चों को विद्यालय में  पौष्टिक आहार देने तथा शिक्षण संस्थानों को बेहतर बनाने की योजनाएं भी बनाई गई। इसके बावजूद देश में उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में आते-आते लगभग 17 प्रतिशत बच्चे पढ़ाई छोड़ देते है। कई राज्यों में जिनमें मध्यप्रदेश भी शामिल है, यह आंकड़ा 25 प्रतिशत से अधिक है।  बालकों के लिए यह दर बालिकाओं से 2 प्रतिशत अधिक है।  पढ़ाई छोडऩे से जुड़ी एक समस्या बाल श्रमिकों की है। बाल श्रम निषेध कानून बनने के बाद भी अनेक उद्योगों में बाल श्रमिकों को नियोजित किया जा रहा है। देश में लगभग 1.3 करोड़ बाल श्रमिक है। विद्यालयों छोडऩे एवं बाल श्रम संबंधी समस्याएं कोविड महामारी के कारण और अधिक बढ़ गई है क्योंकि अनेक परिवार अपने बच्चों को शिक्षा हेतु भेजने की जगह किसी काम में लगाकर परिवार की आय बढ़ाना चाहते है। आवश्यकता है कि विद्यालय छोडऩे वाले बच्चों को चिन्हित किया जाए, उनके पालकों को समझाइश एवं आर्थिक सहायता दी जाए एवं विद्यालयों में ऐसे संभावित बच्चों को लगातार परामर्श दिया जाए। शासकीय शिक्षण संस्थानों को और अधिक साधन संपन्न बनाने की भी आवश्यकता है ताकि बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए अधिक खर्च न करना पड़े।
परिवार द्वारा समुचित पालन नहीं करने, ध्यान नहीं रखने तथा मनोवैज्ञानिक संबल नहीं देने के कारण अनेक बालक एवं बालिकाएं घर छोड़ देते हैं। राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के वर्ष 2019 के आंकड़ों में गुम होने वाले बच्चों की संख्या 74 हजार थी। ऐसे बच्चों को प्राय: अपराधिक तत्वों द्वारा अनैतिक कार्यों, बाल-यौनाचार एवं भीख मागंने के लिए लगाया जाता है। अनेक बाल अपराधी, बाल सुधार गृह में समय बिताने के बाद पुन: आपराधिक कार्यों में संलग्न हो जाते हैं। हाल ही में शक्ति मिल गैंगरेप प्रकरण के एक बाल अपराधी के बारे में ऐसी ही जानकारी मिली है। स्वाभाविक तौर पर परिवार एवं समाज को बच्चों के मनोवैज्ञानिक विकास पर और अधिक ध्यान देना होगा जिससे घर छोड़कर भागने की प्रवृत्ति पर अकुंश लग सके।
रिसायकल्ड कागज की समय पर उपलब्धता नहीं होने के कारण गत दो अंकों से समीरा के प्रकाशन में व्यवधान एवं विलंब हो रहा है, जिसके लिए खेद है। आप सबकी शुभकामनाओं से इस समस्या का शीघ्र निदान हो जाएगा तथा समीरा का प्रकाशन पुन: समय पर हो सकेगा।

    शुभकामनाओं सहित....