भोलू बना सितारा

भोलू, नमन, दिव्या और आंचल जगदंबा बस्ती में रहते थे। नमन और दिव्या को पढ़ना बहुत अच्छा लगता था। भोलू को ड्रामा पसंद था और आंचल को डांस करना अच्छा लगता था। सभी की उम्र 10 से 12 साल थी। इन दिनों चारों बच्चे अपने ही स्कूल में ड्रामा सीख रहे थे। ड्रामा, कला अकादमी के सौजन्य से किया जा रहा था। कला अकादमी ने निर्धन वर्ग के बच्चों की प्रतिभा को तलाशने के लिए यह समर क्लास शुरू की थी।
डेढ़ महीने के बाद कला अकादमी के द्वारा ही प्रसिद्ध हिन्दी लेखकों की कहानी पर इन्हीं बच्चों के द्वारा ऑडिटोरियम में मंचन भी किया जाना था। भोलू, नमन, दिव्या और आंचल के साथ अनेक बच्चे यहां पर साथ-साथ अभिनय का प्रशिक्षण ले रहे थे। समय मिलने पर कला के शिक्षक अमृत कौर, नैना और अमन बच्चों को नैतिक कहानियां व महापुरुषों के प्रसंग भी सुनाते। समय मिलने पर बच्चे खेलते भी थे। सभी बच्चों को प्रेमचंद की कहानियों का मंचन करना था। भोलू, नमन, दिव्या और आंचल के ग्रुप को प्रेमचंद की कहानी ‘पंच परमेश्वर’ का मंचन करना था। एक दिन भोलू की तबियत खराब हो गई और वह अभिनय कक्षा में नहीं जा पाया। भोलू को ‘जुम्मन मियां’ का मुख्य किरदार सौंपा गया था। इसलिए शिक्षकों के साथ ही सभी बच्चों को भी चिंता लग गई कि आखिर भोलू कब ठीक होगा? अमृत मैडम बोलीं, ‘भोलू तो बहुत अच्छी एक्टिंग करता है। ऐसे में उसकी कमी बहुत खल रही है। आखिर भालू को हुआ क्या है?’ अगले दिन नमन ने अमृत मैडम से कहा, ‘मैडम, भोलू की तबियत प्रदूषित वातावरण और गंदे पानी से खराब हुई है। कल उसे उसकी मम्मी डॉक्टर के पास लेकर गई थीं। भालू तो आज यहां आना चाह रहा था। वह बोल रहा था कि मैं बिल्कुल ठीक हूं।’ लेकिन डॉंक्टर ने उसे दो दिन आराम करने के लिए बोला है।’ नमन की बात पर दिव्या बोली, ‘मैडम, हमारी जगदंबा बस्ती के पास ही लोग कूड़ा डालते हैं, जिससे पूरी कॉलोनी में बदबू आने लगी है।’
दिव्या की बात सुनकर अमन सर बोले, ‘क्या वहां सफाई कर्मचारी नहीं आते?’ आंचल बोली, ‘सर, आते हैं, लेकिन वह तो ऊपर-ऊपर सफाई करके चले जाते हैं।’ बच्चों की बातें सुनकर अमृत, नैना और अमन बहुत दुखी हुए। अमृत, नैना और अमन तीनों ही यंग टीचर थे। तीनों ने अपनी कक्षा के पचास बच्चों को उस दिन एक्टिंग की शिक्षा देने के बजाय स्वच्छता का पाठ पढ़ाया और अगले दिन उनकी कॉलोनी के पास बने कूड़े के ढेर को साफ करने का वायदा भी किया। उन्होंने कक्षा के सभी बच्चों से कहा कि कल पुराने और साफ कपड़े पहनकर आएं। अगले दिन कक्षा में नैना ने सभी बच्चों को रबड़ के दस्ताने दिए, अमन ने मुंह पर लगाने वाले मास्क बांटे। अमृत कौर के पिता की भवन निर्माण सामग्री की दुकान थी। इसलिए वह अपने यहां से सीमेंट और टूट-फूट की मरम्मत का कच्चा माल लेकर आई हुई थी। सभी बच्चे अपने शिक्षकों के साथ जगदंबा कॉलोनी में जा पहुंचे। इसके बाद वहां की सफाई का कार्य युद्ध स्तर पर शुरू हुआ। बच्चों व शिक्षकों को काम पर लगे देखकर जो लोग घरों में मौजूद थे, वे भी वहां हाथ बंटाने के लिए आ पहुंचे। सीमेंट व पत्थरों से गड्ढों को भरना शुरू किया गया। अमन ने एमसीडी को फोन कर के कचरा गाड़ी भी मंगवा ली थी। जिस कूडे़ को लोग घरों के आस-पास फेंक देते थे, उसे उठवाया गया और वहां पर एक बड़ी कचरा पेटी लगाई गई। इसके साथ ही प्रत्येक घर को ढके हुए डस्टबिन दिए गए ताकि वे अपने कूड़े को उसमें डालें और बंद करके रखें।
कुछ ही घंटों में जगदंबा कॉलोनी की सूरत बदल चुकी थी। अब वहां रहने वाले लोगों को अपनी गली पहचान में ही नहीं आ रही थी। बस्ती के सभी लोगों ने बच्चों के साथ कला के शिक्षकों को भी धन्यवाद किया।
दो दिन बाद भोलू कुछ ठीक हुआ और अपनी क्लास में आया। वह जुम्मन मियां के किरदार को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत कर रहा था। इसी तरह हंसी-खुशी में डेढ़ महीना बीत गया और 22 जून की तारीख आ गई। इस दिन कमानी ऑडिटोरियम में बच्चों की कला और अभिनय की परीक्षा थी। सभी ने अपने डायलॉग याद किए हुए थे। कला अकादमी की ओर से स्वास्थ्य मंत्री को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था। कला अकादमी के द्वारा बारह केन्द्रों पर दिल्ली के विभिन्न स्थानों के बच्चों को प्रशिक्षित किया गया था। सभी की कहानियों का मंचन 22 जून से 25 जून तक किया जाना था। ‘पंच परमेश्वर’ की कहानी का मंचन 22 जून को पांच बजे प्रारंभ होना था। पंच परमेश्वर के पात्रों के अनुरूप बच्चों ने पोशाकें पहनी हुई थीं और मेकअप किया हुआ था। जैसे ही कहानी नाटक रूप में प्रस्तुत हुई, वैसे ही सभी पात्रों ने अपने-अपने अभिनय को जीवंत करना शुरू कर दिया। भोलू का जुम्मन मियां का किरदार सभी पर भारी पड़ा।
सभी बच्चों को प्रमाण-पत्र प्रदान किए गए और जिनका अभिनय श्रेष्ठ था, उन्हें स्वास्थ्य मंत्री के द्वारा पुरस्कार प्रदान किए गए। भोलू को भी सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार प्राप्त हुआ। जब भोलू के माता-पिता को मंच पर बुलाया गया तो वे खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। दोनों की आंखों में खुशी के आंसू थे।