कैसे इंसान हैं हम
By Sameera, 20 July, 2014, 22:26

मैं गजल हूं मैं कोई आज का अखबार नहीं।
इस सियासत से मेरा कोई सरोकार नहीं।।
सब यहाँ आगे निकल जाने पे आमादा हैं।
साथ चलने के लिए कोई भी तैयार नहीं।।
टुकड़ों-टुकड़ों में बटी है ये हमारी धरती।
आसमानों पे मगर एक भी दीवार नहीं।।
कैसे इंसान हैं हम साथ रहा करते हैं।
प्यार करते हैं मगर प्यार का इज़हार नहीं।।
सब यही सोच के हर काम किया करते हैं।
मैं अकेला ही तो दुनिया में गुनहगार नहीं।।
सूखे होंठों की तरह फट गयी प्यासी धरती।
दूर तक आज भी बरसात के आसार नहीं।।
मैंने माना कि मेरी माँ की ज़ुबाँ हिन्दी है।
कौन कहता है कि ऊर्दू से मुझे प्यार नहीं।।
अशोक मिज़ाज, सागर