सच बोलने की हिम्मत

मोहित, अंकित और अमन तीनों अच्छे दोस्त थे। अंकित और अमन प्राइवेट स्कूल में पढ़ते थे और मोहित पास के ही सेंट्रल स्कूल में। मोहित के पिता सीआईएसएफ में काम करते थे।
तीनों एक ही मोहल्ले में रहते थे। साथ-साथ घूमना और खेलना। पढ़ना भी साथ-साथ होता था। हालांकि मोहित की किताबें, अंकित और अमन की किताबों से थोड़ी अलग थीं।
सीआईएसएफ में होने के कारण मोहित के पापा अनुशासन पसंद थे, जिसका असर मोहित पर दिखता था। सुबह उठना। उठकर पास के पार्क में टहलने जाना। आकर पढ़ाई करना। ये सब उसके रुटीन का हिस्सा था।
तीनों दोस्तों को शाम को साथ खेलना खूब पसंद था। जिस मैदान में वो तीनों खेलते थे, उसके पास ही अमरूद का बगीचा था। पके हुए अमरूद लगे थे। अमरूद के पेड़ों पर लगे अमरूदों को देख उन तीनों का बालमन उन्हें पाने की इच्छा करता। अमन ने अंकित और मोहित से कहा, ‘इन अमरूदों को तोड़ने का कोई प्लान बनाया जाये।’
अंकित ने कहा, ‘नहीं यार, पकड़े गए तो।’
मोहित ने भी हामी भरते हुए कहा, ‘अंकित सही कह रहा है। किसी ने अमरूद तोड़ते देख लिया तो मार भी पड़ेगी।’
अमन ने कहा, ‘बस! तुम मार से डरते हो। लेकिन ये सोचो कि किसी ने नहीं देखा और हम अमरूद तोड़ने में कामयाब हो गए तो कितना मजा आएगा।’
‘ऐसा क्या!’ अंकित ने हामी भरने वाले अंदाज में कहा।
‘मुझे तो डर लगता है। घर में किसी को पता चल गया तो’, मोहित ने दोबारा अपना डर सामने रखा।
अमन ने कहा, ‘हम शाम को आयेंगे, जब कोई नहीं होगा। खूब सारे मीठे अमरूद तोड़ेंगे और खायेंगे।’
‘हां ये तो है’, मोहित और अमन ने लगभाग एक साथ ये बात कही।
उन्होंने बगीचे के बाहर खड़े होकर एक बार फिर अमरूद के पेड़ों की ओर देखा।
तीनों की आंखों में एक चमक थी। उन्हें लग रहा था कि कितने मीठे होंगे ये अमरूद।
लेकिन उन्होंने इसके बारे में तो सोचा ही नहीं था कि इस दीवार को कैसे पार करेंगे? मोहित ने तभी यह बात पूछ ली, ‘अच्छा हम इस दीवार के पार कैसे जायेंगे?’
अमन ने दीवार की ओर देखते हुए कहा, ‘अगर हम इस दीवार से लगाकर तीन ईंट रख दें तो हम इसके ऊपर चढ़ सकते हैं। तुम लोग क्या कहते हो?’
‘हां, यह किया जा सकता है।’ मोहित ने कहा।
चलो अभी घर चलते हैं और कल शाम को अमरूद खाने का इंतजाम किया जायेगा।’ अमन ने मोहित और अंकित की तरफ देखते हुए कहा।
तीनों दोस्तों ने अमरूद के पेड़ों की ओर देखा और घर की तरफ चल दिए।
कल शाम का सोचकर तीनों दोस्त बड़े खुश थे। रात को तीनों अपने घर में लेटे हुए थे, लेकिन उनका मन तो वहीं कहीं अमरूद के पेड़ पर टंगा रह गया था।
वो सोना चाहते थे और उन्हें लग रहा था कि बस जल्दी सुबह हो और वो मिलकर इस पर बात करें। मोहित की मां ने एक बार पूछा भी, ‘क्या हुआ? नींद नहीं आ रही है?’
उसने कहा, ‘आ रही है’ और आंखें बंद कर सोने का दिखावा करने लगा।
अब भला वो अपनी मां को कैसे बताता कि उसकी नींद अमरूद के कारण कहीं खो सी गई है। कुछ ऐसा ही हाल उसके बाकी दो दोस्तों, अमन और अंकित का था। उन दोनों की भी नींद गायब ही थी। सुबह हुई और तीनों एक बार फिर मिले। उन्होंने अमरूद वाली बात फिर से दोहराई। तीनों के इरादे एक हो चले थे।
शाम को अमन, अंकित और मोहित आज के खेल के लिए मैदान की ओर चल पड़े। तीनों दोस्तों ने मैदान में पड़ी ईंटों के ढेर से एक-एक ईंट उठाई और बगीचे की दीवार के पास फेंक दी। मैदान में और भी बच्चे खेल रहे थे। लेकिन शाम होने के कारण सब अपना खेल बंद कर घर जा रहे थे। मोहित, अंकित और अमन को तो बस इसी का इंतजार था।
सभी बच्चों के मैदान से चले जाने के बाद उन तीनों ने ईंटों को एक के ऊपर एक रख दिया। इससे इतनी पहुंच बन गई कि दीवार पर चढ़ा जा सके। सबसे पहले अमन ने जोर लगाया और दीवार पर चढ़ गया। उसके बाद अंकित और मोहित ने भी कोशिश की और कामयाब हुए। तीनों ने दीवार पर खड़े होकर मैदान की ओर देखा तो मैदान काफी बड़ा दिखाई दे रहा था। सभी बच्चे अपने घर जा चुके थे।
उसके बाद उन्होंने अमरूद के पेड़ों को देखा और दीवार से तोड़ने की कोशिश करने लगे। लेकिन पेड़ दूर था। उनकी पकड़ में बस उसकी टहनियां ही आ रही थीं।
बिना कुछ सोचे अमन दीवार से उतर कर बगीचे में चला गया। उसने एक अमरूद तोड़ा और खाने लगा। लाल, मीठा अमरूद। उसने कहा, ‘ये तो बहुत मीठा है।’
अंकित भी दीवार से उतर बगीचे में चला गया, उसे उतरता देख मोहित भी उतर गया।
तीनों दोस्तों ने एक-एक कर बहुत सारे अमरूद तोड़े और खा लिए। अमरूद सचमुच मीठे थे और लाल भी। तीनों को बहुत अच्छा लग रहा था। अमन ने तो दो अपनी पैंट की जेब में भी रख लिए। उसे देखकर मोहित और अंकित ने भी अपनी जेब में अमरूद रख लिए।
पेट, मन और जेब भर जाने के बाद तीनों ने घर जाने की सोची। लेकिन देखा कि ईंटें तो उधर ही रह गई थीं और दीवार इतनी ऊंची थी कि वो उस पर चढ़ नहीं सकते थे। उन्होंने नजर दौड़ाई तो कोई ईंट, पत्थर भी नहीं दिख रहा था।
तीनों परेशान हो गए। धीरे-धीरे अंधेरा होता जा रहा था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब दीवार पर कैसे चढ़ें?
तभी मोहित ने कहा, ‘अगर हम दो लोग नीचे बैठें तो कंधे पर पैर रखकर एक दीवार पर चढ़ सकता है। और उसके बाद वह दीवार से दूसरे का हाथ पकड़ कर ऊपर खींचे, साथ ही दूसरा नीचे से उसे सहारा दे तो दूसरा भी चढ़ सकता है। और उसके बाद कोई एक दूसरी तरफ उतरकर ईंट दे दे तो तीसरा भी दीवार पर चढ़ जायेगा।’
उन्हें लगा कि मोहित सही कह रहा है। एक बार फिर मोहित बोल उठा, ‘सबसे पहले अंकित जायेगा, क्योंकि वह सबसे हल्का है। उसके बाद अमन तुम जाओगे और सबसे आखिर में मैं जाऊंगा।’
उसके उस फैसले से अमन और अंकित को लगा कि मोहित उनका सबसे अच्छा दोस्त है।
मोहित के प्लान के मुताबिक सबसे पहले अंकित दीवार पर चढ़ा। बाद में अमन को नीचे से मोहित ने और दीवार से अंकित ने सहारा दिया और वो भी दीवार पर चढ़ गया। फिर अंकित ने दूसरी ओर उतर कर अमन को ईंट थमा दीं, जिन्हें उसने बगीचे की ओर खड़े मोहित को थमा दिया। तीनों दोस्त एक-एक कर बगीचे से बाहर निकल आये। लेकिन तीनों के कपड़े गंदे हो गए थे। मोहित की कोहनी में खरोंच भी आई थी।
घर जाते हुए तीनों खुश थे। घर की गली के मुहाने पर ही मोहित के पापा मिल गए। उन्होंने बच्चों के कपड़ों का हाल देखा तो उन्हें समझ आ गया कि कोई तो बात है। उन्होंने अमन से पूछा, ‘क्या हुआ?’
अमन ने कहा, ‘कुछ नहीं अंकल।’ फिर उन्होंने अंकित की तरफ देखा। अंकित ने भी वही लाइन दोहराई, ‘कुछ नहीं अंकल।’ उन्होंने अब मोहित से पूछा, ‘क्या हुआ?’ मोहित ने कहा, ‘पापा हम अमरूद चुराने गए थे।’
पापा ने पूछा, ‘कहां?’ मोहित ने सारी कहानी सुना दी। पापा ने कहा, ‘मैं खुश हूं कि तुमने सच बोलने की हिम्मत दिखाई और साथ में अपनी सूझबूझ से वहां से निकल आए। लेकिन ऐसी सोच अच्छे मकसद के लिए लगाई जानी चाहिए। साथ ही ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे तुम लोगों को झूठ बोलने की नौबत आये।’ मोहित के पापा ने आगे कहा, ‘कल तुम तीनों मेरे साथ शर्मा अंकल यानी अमरूद के बगीचे के मालिक के यहां चलोगे और उन्हें सॉरी कहोगे।’