हमारा गणतंत्र

इसमें सभी नागरिकों को सुरक्षित रहने, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय दिलाने, विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और उपासना की स्वतंत्रता तथा सबको स्थिति और अवसर की समानता प्रदान करने, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता का आश्वासन देने वाली बंधुता स्थापित करने की घोषणा भी की गई है। हमारा कत्र्तव्य है कि हम अपने हृदय में भारत भूमि के प्रति कृतज्ञता का भाव धारण करें और हमारा गणतंत्र पूरे विश्व के लिए आदर्श के रुप में प्रस्तुत हो।
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामना।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 26 जनवरी 1950 को भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न गणतंत्र घोषित किया गया। गणतंत्र शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है गण और तंत्र। गण का मतलब है जनता और तंत्र का मतलब है प्रणाली। गणतंत्र का अर्थ है जनता द्वारा नियंत्रित प्रणाली। गणतंत्र में सरकार की शक्ति जनता से आती है तथा सैद्धांतिक रूप से देश के सर्वोच्च पद पर आम जनता में से कोई भी व्यक्ति आसीन हो सकता है।
गणतंत्र के संस्कार हमारे देश में सदैव से विद्यमान रहे हैं। प्राचीन भारत में लोकतंत्र तथा गणराज्य व्यवस्था विकसित रूप में प्रचलित थी। गणराज्यों में शासन किसी राजा के हाथ में न होकर गण या अथवा संघ के अधीन होता था। वैदिक उल्लेखों में दो प्रकार की गणतांत्रिक शासन व्यवस्थाएं सामने आती है। प्रथम, जिसमें राजा निर्वाचित होता था। राज्य व्यवस्था संबंधी निर्णय लेने में राजा की सहायता के लिए अधिकारियों की एक समिति होती थी। राज्य की वास्तविक शक्ति इसी समिति में निहित होती थी। प्राय: राजा राज्य के विद्वानों तथा मंत्री परिषद के परामर्श से ही निर्णय लेता था। दूसरा, जिसमें संपूर्ण शक्ति राजा या सम्राट में नहीं अपितु परिषद या सभा में निहित होती थी। इस सभा में अपनी योग्यता के कारण समाज में सम्मान प्राप्त व्यक्ति शामिल होते थे। सभी समाज, जनजातियों के अपने मुखिया होते थे राज-काज में जिनकी बात का सम्मान रखा जाता था। प्राचीन भारत में सबसे पहला गणराज्य ईसा से लगभग 6 सदी पूर्व 'वैशालीÓ था। नीति, सैन्य तथा महत्वपूर्ण विमर्श करने वाली गणतांत्रिक इकाई 'विदथÓ का उल्लेख ऋग्वेद में भी हैं। इन चर्चाओं में स्त्री या पुरुष दोनों ही भाग लेते थे। महाभारत के 'शांति पर्वÓ में गणों की विशेषताओं पर विस्तृत चर्चा हुई है। बौद्ध एवं जैन ग्रंथों में भारत के प्राचीन महाजनपदों के रूप में गणराज्यों का व्यापक वर्णन है। दक्षिण भारत के चोल, चेर, पांड्या इत्यादि राज्यों के भीतर आत्मनिर्भर तथा स्वनिर्णय की शक्ति से युक्त ग्राम ईकाईयों के उल्लेख हैं। कौटिल्य द्वारा वर्णित राज्य के सात तत्वों में पहले तीन है, स्वामी या राजा, अमात्य या मंत्री, जनपद या लोग। 'अर्थशास्त्रÓ के अनुसार प्रजा की खुशी या लाभ में ही राजा की खुशी या लाभ निहित है। प्राचीनकाल में गणराज्यों के विनाश का सबसे बड़ा कारण उच्च पदों का आनुवांशिक हो जाना तथा गणराज्यों का झुकाव राजतंत्रात्मक पद्धति की ओर हो जाना था।
हमारी वर्तमान संवैधानिक व्यवस्था प्राचीन गणराज्यों की संरचना के समरूप ही है। व्यक्ति की गरिमा तथा मानव अधिकारों को और भी भलीभांति परिभाषित कर उसे मौलिक अधिकारों में शामिल किया गया है तथा एक कल्याणकारी राज्य के संचालन के लिए एक आदर्श शासन व्यवस्था संविधान में स्थापित की गई है। यही कारण है कि 75 साल बाद भी अनेक चुनौतियों के बावजूद हमारा गणतंत्र दिन-प्रतिदिन सुदृढ़ होता जा रहा है।
समता, सौहाद्र्ध और देश प्रेम ऐसे मूल्य हंै जिनसे कोई भी लोकतंत्र मजबूत होते हैं। गणतंत्र दिवस पर यह संकल्प लेने की आवश्कता है कि हमें कत्र्तव्यों और अधिकारों में समता बनाये रखते हुए संविधान की प्रस्तावना के लक्ष्यों की पूर्ति ओर बढ़ते रहना है। यह विचार भी करना है कि इन संकल्पों की प्राप्ति की गति तीव्र है या मंद तथा इन संकल्पों की पूर्ति में जो बाधायें हंै उन्हें चिन्हित कर उन्हें हटाने का प्रयास करें ताकि इस संकल्प को पूरा करने के लिए हम तेजी से आगे बढ़ सकें और तंत्र पर गण की महत्ता बनी रहे।
पुन: गणतंत्र दिवस की बधाई एवं शुभकामना सहित...