जल है तो कल है...
जल प्रकृति की अनमोल धरोहर है तथा जीवन का सबसे आवश्यक तत्व है। बिना पानी के जीवन संभव नहीं है। स्वच्छ एवं सुरक्षित जल अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी है। बढ़ती आवश्यकताओं तथा सीमित उपलब्धता के चलते जल संरक्षण समय की मांग है। जल संरक्षण तथा पर्यावरण संरक्षण एक-दूसरे से जुड़े हैं। पर्यावरण संरक्षण एवं जल संरक्षण केवल सरकार या कुछ संस्थाओं की जिम्मेदारी नहीं है बल्कि यह हर वर्ग तथा हर नागरिक की जिम्मेदारी है। वर्तमान और भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए प्रत्येक व्यक्ति का पर्यावरण संरक्षण और जल संरक्षण अभियान से जुडऩा आवश्यक है।
गर्मी के प्रारंभ होते ही देश के विभिन्न भागों में पीने के पानी की समस्या प्रति वर्ष बढ़ती जा रही है। पीने के लिए मनुष्य को प्रतिदिन 3 लीटर एवं पशुओं को 50 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। भारत के लगभग 80 प्रतिशत गांव कृषि एवं पेयजल के लिए भू-जल पर ही निर्भर है। अभी भी हमारे अनेक गांवों में पीने के पानी की समस्या है तथा महिलाओं को मीलों पैदल चलकर पानी लाना पड़ता है। नगरीय क्षेत्रों में एक-दो दिन छोडकर पेयजल प्रदाय आम बात है। गर्मी के मौसम में देश में हर साल कई व्यक्ति पानी के कारण होने वाले झगड़ों में अपनी जान गंवाते हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार विश्व में लगभग 150 करोड़ लोगों को साफ पानी नहीं मिल पा रहा है तथा आज भी एक बड़ी आबादी विषाणुओं और औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों युक्त पानी पीने को मजबूर है। लगभग 4 करोड़ भारतीय जल-जनित बीमारियों से पीडि़त हैं।
हमारी कृषि मुख्यता: भू-जल पर आश्रित है। बढ़ती जनसंख्या, खेती एवं उद्योगों में अधिक उत्पादन लेने के लिए लगातार बढ़ते जल के उपयोग हेतु अनावश्यक रूप से अधिक जलदोहन किया जा रहा है। उद्योगों के रसायनों के कारण नदी एवं तालाब प्रदूषित हो रहे हैं। केन्द्रीय भू-जल बोर्ड के अनुसार भारत में भू-जल स्तर में 20 सेमी. प्रतिवर्ष की औसत दर से कमी होती जा रही है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से वर्षा की अवधि एवं मात्रा में लगातार कमी आ रही है। कुओं, नलकूपों एवं तालाबों से बडी मात्रा में जलदोहन के कारण भू-जल में कमी आई है। नगरों में पाईप लाईन में खराबी एवं मानवीय लापरवाही के चलते 30-40 प्रतिशत पीने का पानी बर्बाद भी हो जाता है।
हालांकि पृथ्वी का 70 प्रतिशत भाग जलमंडल है तथा जमीन के भीतर तथा वायुमंडल में भी पानी है, परंतु यह एक सीमित मात्रा है तथा हमारी आवश्यकताएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। पृथ्वी पर जल संरक्षण चक्र अनवरत चलता रहता है, जिसमें वर्षा तथा ग्लेशियरों की मुख्य भूमिका है। पर्यावरण को हो रही लगातार क्षति के फलस्वरूप हो रहे जल वायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जल चक्र को प्रभावित कर रहे है।
भू-गर्भ में घटती जल राशि को देखते हुए बारिश की एक-एक बूंद को सहेजना जरूरी है। हमारे अविवेक पूर्ण विकास कार्यों की वजह से अनेक तालाब, बावडिय़ां सूख रही हैं तथा नदियों का प्रवाह कम हो रहा है। इस सभी स्त्रोतों को पुन:जीवित करने की आवश्यकता है। पानी को बर्बाद करना जितना सरल है वहीं इसे अत्यंत सरल तरीकों से बचाया भी जा सकता है। अपने दैनिक उपयोग में जल अपव्यय रोकना, सार्वजनिक नलों से पानी का बहना रोकना, घरों में वॉटर हारवेस्टिंग, पानी की मितव्ययता के साथ खेती, ड्रिप इरीगेशन, जल उपलब्धता के आधार पर कृषि चक्र को अपनाना, वृक्षारोपण, पेड़ों की कटाई पर अंकुश, विकास कार्यों में जल स्त्रोतों को क्षति से बचाना, सोलर बिजली का ज्यादा उपयोग आदि ऐसे उपाय है जिन्हें अपनाकर पानी का अपव्यय बचाया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड के ग्रामीण अंचलों की अनेक सूखी नदियों के किनारे वृक्षारोपण कर ग्रामीणों द्वारा उनको पुर्नजीवित किया है।
जल है तो जीवन है और जीवन है तो कल है। इस कल को संरक्षित रखने के लिए बड़े जतन की जरूरत है। घटते संसाधनों और बढ़ती जरूरतों के दृष्टिगत पानी का संरक्षण वक्त की जरूरत के साथ-साथ सबकी जिम्मेदारी भी बन गया है।
शुभकामनाओं सहित....