कुछ ऐसे मनायें दीपावली...
यह केवल बाहर के अंधकार से लडऩे का संदेश नहीं देती, बल्कि अंदर से लडऩे की प्रेरणा देती है। जरूरतमंदों की मदद के बिना ऐश्वर्य और वैभव बेमानी हंै। जैसे एक दीपक खुद जलता है, लेकिन चारों तरफ प्रकाश फैलाता है। उसी तरह हम भी किसी दुखी इंसान के जीवन में अपनी मदद के एक दीपक से रोशनी कर सकते हैं।
दशहरा एवं दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
दशहरा जहां असत्य पर सत्य की जीत का पर्व है, वहीं दीपावली प्रतीक है अंधकार से लडऩे की। यह हमारे आंतरिक अंधकार पर प्रकाश फैलाने का पर्व है। घर-आंगन में जगमग करते छोटे दीप न केवल अमावस की काली रात का अंधकार भगाते है बल्कि हमारे अंतस में ज्ञान और विवेक का प्रकाश भी फैलाते हैं। बाहर का अंधकार तो हम देख लेते हंै, परंतु मन का अंधकार हम प्राय: नहीं देख पाते। अंधकार जहां हमारे अज्ञान का, दुराचरण का, दुष्ट प्रवृत्तियों का, आलस्य एवं प्रमाद का, बैर एवं विनाश का, राग एवं द्वेष का, आक्रोश एवं हिंसा का प्रतीक है, वहीं प्रकाश हमारी सद्प्रवृत्तियों का, सद्ज्ञान का, संवेदना और करूणा का, प्रेम एवं भाईचारे का, त्याग एवं सहिष्णुता का, सुख एवं शांति का, समृद्धि एवं लाभ का प्रतीक है। भ्रष्टाचार, महंंगाई, बेरोजगारी, असुरक्षा, असहिष्णुता, सामाजिक वैमनस्य ने हमारे देश के माहौल को अंधकारमय कर दिया है। दीपावली अपने निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर समस्त मतभेदों को भुलाकर, एकजुट होकर इस अंधकार को दूर करने का संकल्प लेने का और सामाजिक कुरीतियों एवं लैंगिक भेदभाव के अंधेरे से घिरे समाज को प्रकाशमय करने का दिन है।
इसी दिन धन, ऐश्वर्य और वैभव की देवी लक्ष्मी का भी पूजन किया जाता है। हालांकि नारी को गृहलक्ष्मी कहा जाता है तथा परिवार में बिटिया का जन्म होने पर 'लक्ष्मी आई हैंÓ कहा जाता है, परंतु हमारे समाज में व्याप्त महिलाओं एवं बेटियों के साथ भेदभाव एक ऐसी बड़ी बाधा है जो देश की 50 प्रतिशत आबादी को प्रगति और विकास में सम्पूर्ण योगदान देने से रोक रही है। महिलाओं और बेटियों के योगदान के बिना देश विकास की राह पर आगे नहीं बढ़ सकता। देश में आज भी लड़कियों को अपने जन्म के पूर्व तथा जन्म के उपरांत अपने लिंग के कारण कन्या भू्रण हत्या, यौन शोषण और हिंसा, कम उम्र में शादी जैसी कई चुनौतियों, असमानताओं और लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
देश में जनसंख्या का विषम लैंगिक अनुपात दर्शाता है कि कन्या भू्रण हत्या पर अभी भी पूर्ण नियंत्रण नहीं हो पाया है। भारत दुनिया का एकलौता बड़ा देश है जहां लड़कों से ज्यादा बच्चियों की मौत होती है। बच्चों के सरवाईवाल में लिंग अंतर 11 प्रतिशत है। लड़कों की तुलना में कम लड़कियां अस्पताल में इलाज हेतु भर्ती कराई जाती हैं। 59.1 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से पीडि़त हैं, जबकि पुरूषों में यह प्रतिशत 31.1 है। अभी भी देश में केवल 41 प्रतिशत महिलाएं ही 10वीं या उससे अधिक शिक्षा प्राप्त हैं। महिलाओं की श्रमिक सहभागिता लगभग 27 प्रतिशत है, जबकि 1990 में यह 35 प्रतिशत थी। देश की लोकसभा एवं विभिन्न विधानसभाओं में मात्र 9 प्रतिशत निर्वाचित प्रतिनिधि है। यही कारण है कि वर्ष 2021 में चार प्रमुख आयामों आर्थिक भागीदारी और अवसर, शैक्षणिक उपलब्धि, स्वास्थ्य और उत्तरजीविता तथा राजनैतिक अधिकारिता पर आधारित वल्र्ड इकॉनामी फोरम के ग्लोबल जेंडर गेप इंडेक्स में मूल्यांकन किए गए 156 देशों में भारत 140वें स्थान पर है।
देश की आधी आबादी की विकास में बराबरी की सहभागिता के लिए जरूरी है कि समाज बेटियों के प्रति अपनी सोच बदले और उन्हें बेटों के ही समान सुविधाएं तथा वातावरण देकर खुद का भविष्य निर्माण करने के लिए प्रोत्साहित करे। महिलाओं एवं बालिकाओं की खुशियों एवं सफलताओं से फैला आलोक हमारे सामाजिक वातावरण की असली दीपावली होगी।
एक बार पुन: दशहरा एवं दीपावली की शुभकामनाओं सहित....