नारी शक्ति और हम...
नवरात्रि पर्व एवं विजयादशमी की हार्दिक बधाई
अथर्ववेद में नारी को सत्य आचरण यानी धर्म का प्रतीक माना गया है। नारी के समस्त गुणों के कारण ही प्राचीन समय में परिवार की मुखिया माता होती थी, लेकिन गुजरते समय के साथ यह नियम बदल गया। महिलाओं की सहजता और सरलता को उनकी कमजोरी समझा जाता है। आज दुनिया भर में महिलाओं का उत्पीडऩ बढ़ता जा रहा है। आज की नारी मानसिक एवं आर्थिक रुप से आत्मनिर्भर है। शिक्षा के बढ़ते प्रसार के कारण वह ज्यादा जागरूक है। शिक्षा की वजह से नारी न केवल आत्मनिर्भर हुई है, बल्कि रचनात्मकता में पुरुषों के दबदबे वाले क्षेत्र में भी अपनी बुलंदी का झंडा फहरा रही है।
नवरात्रि का पर्व शक्ति की पूजा के पर्व के रूप में मनाया जाता है। शक्ति उपासना का भारतीय चिंतन में बहुत महत्व है। शक्ति ही संसार का संचालन करती है। उल्लेखनीय है कि धर्मग्रंथों में नारी को आदिशक्ति मानकर उसकी पूजा की गई है। परंतु वास्तविकता में अभी भी समाज के एक बड़े हिस्से की महिलाओं के बारे में सोच दकियानूसी ही है तथा महिलाओं को समाज में एक दोयम दर्जे का नागरिक ही माना जाता है। बढ़ी हुई साक्षरता एवं विकास के बावजूद अभी भी देश में नारी सशक्तिकरण एक बड़ी चुनौती है। नारी सशक्तिकरण को प्राय: नारीवाद का रूप देकर तथा एक ऋणात्मक प्रक्रिेया बताते हुए नारी सशक्तिकरण की गति को ब्रेक लगाने का प्रयास किया जाता है।
इसके बावजूद आज नारी अपने आत्म विश्वास के बल पर अब दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल हो रही है। वह हर क्षेत्र में अपनी घुंघट वाली छवि को दूर कर पुरुष के बराबर कदम बढ़ा रही है। वह न केवल परिवार को संभाल रही है बल्कि कैरियर के मोर्चे पर भी पुरुषों को बराबर की टक्कर दे रही है। बढ़ी हुई शिक्षा एवं सामाजिक सोच में आ रहे बदलाव के चलते शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, प्रशासन, अभियांत्रिकी, न्यायपालिका, विमानन, रक्षा सेवाओं एवं पुलिस में महिलाओं का प्रतिधिनित्व लगातार बढ़ता जा रहा है। परंतु, देश में महिलाओं की श्रम में भागीदारी मात्र 25 प्रतिशत है तथा शासकीय एवं निजी क्षेत्र में उच्च पदों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है। अभी भी कई कार्यों में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम पारिश्रमिक दिया जाता है एवं उन्हें पदोन्नति के अवसर भी कम प्राप्त होते हैं। भारत में सकल रोजगार दर 50 प्रतिशत के करीब है, जबकि चीन में यह 70 प्रतिशत है। इसका एक प्रमुख कारण श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी कम होना है। विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार महिलाओं की श्रम भागीदारी 50 प्रतिशत होने पर जीडीपी की वृद्धिदर 8 प्रतिशित हो जाएगी।
नारी जीवन में सुरक्षा का मुद्दा उसके जन्म के पूर्व से लेकर सारी जिंदगी बना रहता है। अभी भी कन्या भू्रण हत्या, बालिकाओं में कुपोषण, यौन हिंसा एवं परिवारिक हिंसा समाज के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। लैंगिंक भेदभाव व बढ़ती लैंगिंक हिंसा समाज एवं व्यवस्था के चेहरे पर एक बदनुमा दाग के रूप में है। देश के विभिन्न भागों में मासूम बालिकाओं के साथ विकृत यौन हिंसा की घटनायें होती ही जा रही हैं। हमारे देश में बालिकाओं की शिक्षा पर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया जाता है तथा उन्हें उचित शिक्षा के अवसर प्राप्त नहीं होते। आजादी के 70 वर्ष बाद भी देश में महिलाओं की साक्षरता दर पुरुषों की तुलना में 18 प्रतिशत कम है।
महिलाओं को सामान्यत: आर्थिक रूप से अपने पति अथवा परिवार पर ही निर्भर रहना पड़ता है। पितृ-सत्तात्मक समाज में उनको प्राय: अपनी पारिवारिक संपत्ति में मालिकाना हक नहीं मिलता। पारिवारिक निर्णयों में तथा समाज में उनकी भूमिका प्राय: शून्य रहती है। यहां तक कि उनके जीवन से संबंधित अनेक निर्णय जैसे शिक्षा, रोजगार, जीवन साथी चुनना आदि में भी समाज एवं परिवार के व्यक्तियों की ही निर्णायक भूमिका होती है।
राजनैतिक प्रतिनिधित्व के रूप में देश की संसद में अभी भी केवल 14 प्रतिशत महिला सांसद है। राज्य विधानसभाओं में तो स्थिति ओर भी खराब है। स्थानीय निकायों में अवश्य 50 प्रतिशत स्थान महिलाओं के लिए है। हाल ही में विधायिका में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण का बिल संसद में पास हुआ है, परंतु इसके लागू होने में समय लगेगा।
नारी शक्ति को मान्यता देकर उसे समाज में उचित स्थान देकर ही नवरात्रि पर्व पर शक्ति पूजा को सार्थक किया जा सकता है।
नवरात्रि पर्व एवं विजयादशमी की शुभकामनाओं सहित...