जैव संपदा और मानव अस्तित्व
जैव संपदा अथवा जैव विविधता और मानव अस्तित्व के बीच गहरा संबंध है। जैव विविधता पर्यावरण को शुद्ध बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देती है तथा हमें प्राकृतिक आपदाओं से बचाती है। मानव की अविवेक पूर्ण गतिविधियों से वातावरण में हुए बदलाव से जैव विविधता को बनाए रखने में गिरावट आई है। जैव विविधता में ह्यस पर्यावरण चक्र में गतिरोध लाता है और इसका स्वाभाविक विपरीत प्रभाव जीवों पर पड़ता है। जैव विविधता में कमी फसलों के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव डल रही है तथा मीठे पानी के स्त्रोतों में कमी आ रही है तथा जूनोटिक रोगों को बढावा दे रही है।
पृथ्वी पर जीवन का उद्भव लगभग 4 अरब वर्ष पूर्व हुआ था। पृथ्वी पर जीवन के लिए जिम्मेदार सबसे छोटे बैक्टेरिया से लेकर सबसे बड़े जानवरों, इंसानों, पेड़-पौधों की विभिन्न प्रजातियों से ही जैव विविधता बनती है। वर्तमान में लगभग तीन लाख किस्म की वनस्पतियां एवं इतनी ही प्रजाति के जीवाणु/ जानवर पृथ्वी पर हैं। विभिन्न कारणों से मूल रूप से पृथ्वी पर विद्यमान 99 प्रतिशत वनस्पति/जीवाणु समय के साथ अब समाप्त हो गए हैं। पिछली 5 शताब्दियों में ही 900 से अधिक प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं।
जैव विविधता पृथ्वी पर जीवन का आधार है तथा यह प्रकृति एवं पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। जैव विविधता के महत्व को देखते हुए दिसंबर 1992 नैरोबी में हुए जैव विविधता सम्मेलन में प्रतिवर्ष 22 मई को जैव विविधता दिवस मनाने का निर्णय लिया गया।
दुनिया की 7-8 प्रतिशत प्रजातियों के साथ भारत दुनिया के 17 अधिक जैव विविधता वाले देशों में शामिल है। बोटानिकॉल सर्वे ऑफ इंडिया के सर्वे में वर्तमान में भारत में 46 हजार से अधिक पौधों में एवं 81 हजार प्रजातियों के जानवरों/जीवाणुओं को दर्ज किया गया है। जैव विविधता की गिरावट देखते हुए संरक्षण हेतु विश्व में लगभग 34 हॉट-स्पॉट चिह्नित किए गए हैं। इनमें से 4 हॉट-स्पॉट भारत में हैं। हिमालय, पश्चिमी तट, पूर्वोत्तर और निकोबार द्वीपसमूह।
जैव विविधता से हमारी रोजमर्रा की जरूरतों यथा रोटी, कपड़ा, मकान, ईंधन, औषाधियों आदि की आवश्यकता की पूर्ती होती है। मनुष्य भोजन के लिए खेती पर निर्भर है और अनेक जीव -जीवाणु कृषि भूमि को स्वस्थ बनाते हैं। लगभग 1/3 फसलों के उत्पादन में परागणकर्ता के रूप में पक्षी, मधुमक्खी और अन्य कीड़े महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अनेक जीव मिट्टी के पोषण तत्वों को फसलों के लिए मुक्त करने में सहायक होते हैं। एक बड़ी आबादी प्रोटीन युक्त भोजन के लिए समुद्र पर निर्भर है। जैव विविधता पारस्थितिक संतुलन बनाए रखने तथा खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने में सहायक होती है तथा इसमें गिरावट अनाज, सब्जियों, फलों, जड़ी-बूटियों और अन्य खाद्यान्न पदार्थों के उत्पादन को प्रभावित करती है।
जैव विविधता को बनाए रखने एवं बढऩे में वनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, परंतु वन क्षेत्र के संरक्षण की ओर हम लगातार उदासीनता बरत रहे है। जैव विविधता पर विपरीत प्रभाव डालने वाली बड़ी परियोजनाओं को भी बिना उचित मूल्यांकन के स्वीकृति दी जा रही है। इस के अतिरिक्त जंगल की आग, जंगलों को डिनोटिफाय करना और जन-जातियों को हटाना जैव विविधता के लिए और उस क्षेत्र की स्थानीय आबादी के लिए खतरे की घंटी है। इस जैव विविधता के केंद्र में प्राय: भारत की वह आबादी आती है जो गरीबी रेखा के नीचे बसर करती है और इनमें अनुसूचित जनजाति के वह लोग हैं जंगल जिनका घर है और जंगल से जिनका अटूट रिश्ता है। वास्तव में यह लोग ही जैव विविधता के नैसर्गिक पहरेदार है।
स्पष्टत: जैव विविधता के संरक्षण पर ही मानव जीवन निर्भर है। पर्यावरण संरक्षण, पारिस्थितिक स्थिति फसल उत्पादन में बढ़ोत्तरी के साथ ताप, बाढ़, सूखा, भूमि-क्षरण आदि से बचाने के लिए जैव विविधता संरक्षण समय की सबसे बड़ी जरूरत है। इस हेतु जैव विविधता अधिनियम 2002 को सही मायने में लागू करने की आवश्यकता है जब कि अभी तक इस अधिनियम में प्रस्तावित स्थानीय निकाय स्तर पर जैव संसाधनों को चिह्नित कर रिकॉर्ड नहीं किया गया है।
शुभकामनाओं सहित....