युद्ध किसी एक देश विशेष तक ही सीमित नहीं रहते अपितु अंतर्राष्ट्रीय फलक पर अपने दूरगामी तथा विनाशकारी प्रभाव छोड़ते हैं। यदि युद्ध को हम नारी अस्मिता से जोड़कर देखें तो यह बात सामने आती है कि आज तक विश्व राजनीति तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में युद्ध पुरूष केंद्रित गतिविधि ही रहा है तथा उसमें स्त्रियों की हिस्सेदारी को सीधे-सीधे नकारा गया है। जबकि युद्धजन्य दुष्प्रभावों का सबसे व्यापक और गंभीर परिणाम स्त्री वर्ग को ही झेलना पड़ता है। हालांकि युद्ध प्रारंभ करने अथवा समाप्त करने के निर्णय में स्त्री की प्राय: कोई भूमिका नहीं होती।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामना।
प्रति वर्ष इस दिवस पर हम महिलाओं को समाज में उनका उचित स्थान दिलाने के प्रयासों की प्रगति का लेखा-जोखा करते है और उनके प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हैं। इस वर्ष रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते सम्पूर्ण विश्व का ध्यान इस समस्या के भावी स्वरूप में की आशंकाओं तथा पडऩे वाले दुष्परिणामों की ओर है। युद्ध एक विघटनकारी प्रक्रिया है जो पूरे मानव समाज को विभिन्न विसंगतियों तथा समस्याओं से न सिर्फ पीडि़त करती है, वरन एक ऐसे वातावरण का निर्माण करती है जहां मनुष्य सामाजिक, आर्थिक एवं मानसिक तीनों स्तरों पर टूट जाता है। चूंकि स्त्री मानव समाज की ही अभिन्न अंग है अत: युद्ध की विभीषिका एवं त्रासदी उसे भी नहीं छोड़ती बल्कि युद्ध का सबसे प्रतिकूल प्रभाव स्त्रियों पर ही पडता है। पिछले समय में विश्व में युद्ध अधिक हो रहे हैं, वह लंबे समय तक होते हैं साथ ही ज्यादा विनाशकारी होते हैं।  
 संयुक्त राष्ट्र की मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार युद्ध के दौरान होने वाली अस्त-व्यस्तता के दौरान स्त्री तथा बच्चे शरणार्थी जनसंख्या का 80 प्रतिशत हिस्सा होते हैं। हाल के रूस-यूके्रन युद्ध के दौरान यूके्रन से बडी संख्या में शरणार्थी पूर्वी योरोप के देशों में जा रहे है, वहीं यूक्रेन ने 16 से 60 वर्ष के सभी पुरूषों को देश छोड़कर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इससे स्त्रियों की समस्याएं बढ ही रही है। 
युद्ध के दौरान घटित यौन अपराध, सामूहिक बलात्कार, हिंसा, अपहरण, लूट-पाट आदि अमानुषिक कृत्य महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक एवं निजी अस्मिता पर हमला करते हैं। युद्ध के दौरान अपने पति के मारे जाने, लापता होने अथवा नजरबंद होने पर स्त्रियों पर ही अपने परिवार के भरण-पोषण का दायित्व आ जाता है। अनेक बार उन्हें अपने अस्तित्व की रक्षा एवं जीवन निर्वाह के लिए गैरकानूनी कार्यों जैसे वैश्यावृत्ति, नशीले पदार्थों की तस्करी आदि का सहारा लेना पड़़ता है। वास्तव में युद्ध के दौरान स्त्री का जीवन स्वयं एक युद्ध बन जाता है। 
इसे ध्यान में रखकर 30 अक्टूबर 2000 को सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 1375 को अपनाकर संघर्ष समाधान एवं शांति सुरक्षा को बनाए रखने में महिलाओं की पूर्ण सहभागिता एवं समान महत्व  को स्वीकार किया है तथा संघर्ष के दौरान एवं पश्चात महिलाओं एवं बालिकाओं के अधिकारों की रक्षा करने वाले अंतर्राष्ट्रीय तथा मानवाधिकार कानूनों के पूर्ण क्रियान्वन की आश्यकता प्रतिपादित की है। परंतु वास्तविकता में महाशक्तियों के द्वंद के चलते युद्ध को टालने एवं समाप्त करने में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर लगातार प्रश्नचन्हि लगते जा रहे हैं।
अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों को टालने, निपटाने एवं युद्ध उपरांत समाज के पुन:निर्माण में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह भी र्निविवाद सत्य है कि महिलाओं नेे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में काफी प्रगति की है तथा पुरुषों के समकक्ष आने का प्रयास किया है, परंतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राजनैतिक क्षेत्र में उनका प्रतिनिधित्व अभी भी बहुत कम है। लोकतंत्रिक शासन व्यवस्था में यदि महिलाओं का प्रतिनिधित्व समुचित हो तो वह युद्ध जैसी स्थिति को टालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। 
कामना है कि सभी मानवतावादी एवं शांतिप्रिय व्यक्तियों की भावनाओं के अनुरूप विभिन्न शक्तिशाली राष्ट्रों का नेतृत्व विश्व कल्याण की सोच के साथ इस युद्ध की स्थिति पर पूर्ण विराम लगावे तथा विध्वंसकारी प्रवृत्ति से बचे। 
होली एवं अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाओं सहित....