प्लास्टिक बनता जा रहा है जी का जंजाल...

विश्व में प्रति वर्ष लगभग 38 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है जिसमें से केवल 9 प्रतिशत प्लास्टिक कचरे का वास्तविक पुनर्चक्रीकरण हो पा रहा है। शेष या तो जमीन पर फेंक दिया जाता है अथवा जलस्त्रोतों में। हमारे आसपास नगरों एवं गांवों में, नदी एवं तालाब तटों पर, खुले स्थान पर एवं पर्यटन स्थलों पर प्लास्टिक के कचरे के ढेर देखने को मिल जाते हंै। एक रिपोर्ट के अनुसार माउंट एवरेस्ट पर भी प्लास्टिक कचरा बढ़ता चला जा रहा है। प्लास्टिक कचरा एवं उससे उत्पन्न माइक्रो प्लास्टिक कण हमारे पारिस्थितिकी तंत्र एवं मानव स्वास्थ को गंभीर खतरा पहुंचा रहे हैं। जिस प्लास्टिक की खोज हमारे आर्थिक लाभ और सुविधा के लिए हुई थी वह अब वास्तव में मानव जाति के जी का जंजाल बन गया है।
पिछले 70 वर्षों में हमारे जीवन में प्लास्टिक और पॉलीथिन के बने सामान ने एक बड़ा स्थान बना लिया है। खाद्य सामग्री, पेय पदार्थ से लेकर अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुएं प्लास्टिक के पैकिंग अथवा बैग में मिलने लगी हैं। कागज अथवा धातु से बनने वाली अधिकांश सामग्री अब प्लास्टिक से बनने लगी हंै। प्लास्टिक के बढ़ते प्रभाव का अनुमान इस तथ्य से होता है कि 1950 में जहां विश्व में प्रति वर्ष 20 लाख टन प्लास्टिक का उत्पादन होता था, वहीं वर्तमान में इसका वार्षिक उत्पादन 45 करोड़ टन से अधिक हो गया है।
प्लास्टिक अपने आप नष्ट नहीं होता तथा हजारों वर्ष तक पृथ्वी में मौजूद रह सकता है। इसका ब्रेकडाउन होकर भी यह माइक्रो प्लास्टिक कणों में बदल जाता है जो और भी अधिक घातक होते हैं। बहुत सारे प्लास्टिक जैसे 20 माइक्रोन से पतले पॉलीथिन का एकल उपयोग होता है तथा इसका पुनर्चक्रीकरण नहीं हो सकता। अकेले भारत में प्रतिवर्ष लगभग 34 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है जिसमें केवल 5 प्रतिशत का पूर्ण पुनर्चक्रीकरण हो सकता है। प्लास्टिक कचरा जलाने पर निकलने वाली विषाक्त गैसें मानव स्वास्थ्य के अतिरिक्त ओजोन परत को भी प्रभावित करती हैं। जमीन पर फेंके गये प्लास्टिक से जमीन की उर्रवा शक्ति कम हो जाती है। यह कचरा हमारे ड्रेनेज सिस्टम के लिए खतरा है क्योंकि यह उसे चोक कर देता है। जलस्त्रोतों में फेंका गया प्लास्टिक कचरा वहां के जीव-जन्तुओं को प्रभावित करता है तथा अतंतोगत्वा समुद्र में पहुंच जाता है। अनुमान है कि समुद्र में प्रतिवर्ष 1.2 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा जमा होता जा रहा है, जिससे वहां के पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर खतरा पहुंच रहा है। एक अध्ययन के अनुसार 60 प्रतिशत से ज्यादा समुद्री पक्षियों में लगभग 100 प्रतिशत समुद्री कछुओं की प्रजातियों के शरीर में माइक्रो प्लास्टिक पाया गया है तथा प्रति वर्ष लगभग 1 लाख से ज्यादा समुद्रीय स्तनधारी जीवों की मौत प्लास्टिक कचरे के कारण होती है।
प्लास्टिक के मानव शरीर पर भी अत्यंत गंभीर दुष्परिणाम हो रहे हैं। प्लास्टिक के पैकेज में रखे सामान एवं खाद्य सामग्री के उपयोग से तथा पृथ्वी और पानी में फेंके गये प्लास्टिक कचरे के कारण बड़ी मात्रा में माइक्रो प्लास्टिक कण हमारे शरीर में जा रहे हैं, जिसके कारण हार्मोन असंतुलन, कैंसर, श्वांस संबंधी बीमारियां तथा प्रजनन संबंधी समस्यायें बढ़ती जा रही हंै।
प्लास्टिक प्रदूषण की गंभीर समस्या तथा प्रकृति एवं मानव जीवन पर उसके गंभीर खतरे को ध्यान में रखते हुए 2022 में संयुक्त राष्ट्र में एक संधि पर बातचीत प्रारंभ हुई जिसका उद्देश्य 2024 के अंत तक प्लास्टिक प्रदूषण कम करने के लिए दुनिया के पहले कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते का अंतिम रूप देना था। परंतु, 2024 में दक्षिण कोरिया के बुसान में हुई बैठक में सरकारें प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र संधि के लिए समझौते पर पहुंचने पर विफल रहीं, क्योंकि तेल उत्पादक देशों ने प्लास्टिक के उत्पादन को सीमित करने का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया।
प्लास्टिक को उपयोग के उपरांत सही तरह से डिस्पोजल तथा पुनर्चक्रीकरण किये जाने पर विशेष ध्यान देकर ही प्लास्टिक के कारण पर्यावरण एवं हमारे जीवन पर होने वाले दुष्प्रभाव को रोका जा सकेगा। 20 माइक्रोन से पतले पॉलीथिनके उपयोग पर प्रतिबंध है, परंतु इसी पॉलीथिन की थैलियां अधिकांश उपयोग में आती हंै। कई बार सब्जी बाजार में या किराना दुकानों पर छापा मारकर इन पॉलीथिन थैलियों को जब्त किया जाता है, परंतु यह केवल अस्थाई कार्यवाही होती है तथा इनका उपयोग बदस्तूर जारी है। आवश्यकता है कि इस तरह कीपॉलीथिन का निर्माण करने वाली फैक्ट्रियों पर ही कार्यवाही की जाये। प्लास्टिक की जगह अन्य पुनर्चक्रीय सामग्री से बने पैकेज/ थैलियां के उपयोग को जनआंदोलन के रूप में चलाने की आवश्यकता है। पहले सभी लोग बाजार जाते समय घर से कपड़े के थैले लेकर जाते थे तथा अधिकांश दुकानदार भी कागज की थैली में सामान देते थे। इसे फिर से प्रारंभ करने में घर की गृहणियां उल्लेखनीय योगदान दे सकती हंै। कई स्वयंसेवी संस्थाएं भी कपड़े एवं कागज के थैले बनाकर बाजार में उपलब्ध करा रही हैं। दुकानों से पतले पॉलीथिन में पैक सामान को नहीं खरीद कर ग्राहक अपना महत्वपूर्ण योगदान देे सकते हैं।
शुभकामनाओं सहित...