गणतंत्र की चुनौतियां
लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता अपनी सरकार चुनती है तथा सरकार के दिन प्रतिदन कार्यों पर नियंत्रण भी रखती है। गूंगे को बोलने और पंख हीन को उडऩे की आजादी देना अर्थहीन है। इसी तरह जनता के ज्ञानवान तथा मुखर बने बिना कोई भी गणतंत्र मजबूत नहीं होता। इसलिए आवश्यक है कि सरकार की गतिविधियां पारदर्शी हों। जनता को सरकारी कार्य की जानकारी हो तथा वह उन पर मुखर तथा निष्पक्ष तरीके से अपनी राय दे सके, ताकि सरकार को जनता का फीडबैक मिलता रहे। इस कार्य में संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत गठित विभिन्न संस्थाओं से स्वतंत्र तरीके से कार्य कर जनता की सहायता की अपेक्षा रहती है।
73वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई
आजादी के बाद हमने जनता की भागीदारी वाली शासन प्रणाली को अपनाया जिसमें राष्ट्र के मामलों को सार्वजनिक माना जाता है। आजादी के बाद भारतीय समाज लंबी गुलामी के कारण बेहद पिछड़ा, जटिल, निर्धन और विकास से कटा हुआ था तथा जनता के मन में खुली हवा की उत्कंठा थी। परिस्थितियों का इशारा देश में एक व्यापक जनसमर्थन वाली कल्याणकारी व्यवस्था बनाने की ओर था। इसीलिए संविधान सभा में विभिन्न जातियों, धर्मों, आर्थिक एवं राजनीतिक विचारों के लोग शामिल किये गये, ताकि भारत की विविधता को समेटे हुए नए गणतंत्र का निर्माण हो सके। देश की विविधता और जटिलता को संविधान के माध्यम से एक ऐसे राजनीतिक रूप में अपनाया गया जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में बहुलतावाद का सम्मान किया गया। संघीय ढांचे, मूलभूत अधिकार, नीति निदेशक तत्व और धार्मिक मामलों के आधार पर गणतंत्र के मायनों को स्पष्ट किया गया। नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने, संविधान के अनुरूप शासन व्यवस्था सुनिश्चित करने तथा व्यवस्था में संतुलन बनाए रखने के लिए स्वतंत्र संस्थाओं के गठन पर भी जोर दिया गया। जनता की भागीदारी को ध्यान में रखते हुए संविधान की प्रस्तावना में संविधान भारत की जनता को समर्पित किया गया है।
72 वर्षों में कई बार हमारी राजनैतिक व्यवस्था और देश की अक्षुण्णता के सामने आई चुनौतियों से गणतंत्र की मूल भावनाओं के आधार पर देश सफलतापूर्वक बाहर आया।
गणतंत्र के 72 साल में हमने बहुत प्रगाति की है तथा हमारी अर्थव्यवस्था विश्व स्तर पर स्थापित हुई है। विज्ञान, तकनीकी एवं अधोसंरचना विकास में हम किसी भी विकसित देश से पीछे नहीं है। परंतु हमारी बड़ी जनसंख्या, नैसर्गिक विविधता तथा व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं कई बार हमारी विकास यात्रा में बाधा उत्पन्न करती हैं। आवश्यकता है कि हमारी नीतियां क्षेत्रीय विविधता तथा विभिन्न वर्गों की आशाओं एवं अपेक्षाओं का समावेश करने वाली हों तथा इसमें हमारी बड़ी जनसंख्या का रचनात्मक उपयोग हो सके।
अभी भी हमारी आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा गरीबी में जीवन काट रहा है। बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, निरक्षरता, धर्ममान्धता, सांप्रदायिकता, जातिवाद, सामाजिक वैमनस्य, क्षेत्रीयता, लैंगिक असमानता, बढ़ती समूह हिंसा, असंतोषप्रद स्वास्थ्य सेवाएं, व्यवस्था की विश्वसनीयता में गिरावट तथा पर्यावरण की अनदेखी हमारी व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती उत्पन्न कर रहे हंै। राष्ट्र में एक नैतिक संकट उत्पन्न होता जा रहा है। नए मूल्यों को स्थापित करने का दावा करने वालों की कथनी और करनी पर प्राय: विश्वास नहीं किया जा सकता। भ्रष्टाचार एवं काले पैसे के आधार पैदा हुआ एक नया वर्ग शासन और समाज पर हावी हो रहा है तथा दुर्भाग्यवश राजनीति और समाज का नेतृत्व कर रहा है। परिणाम स्वरूप गण और तंत्र अलग हो गए हंै, जबकि कोई भी गणतंत्र, गण तथा तंत्र के समावेश से ही सुदृढ़ होता है।
हम सभी नागरिकों का सक्रिय योगदान ही इन चुनौतियों का सामना करते हुए गणतंत्र को उसकी मूल संवैधानिक भावनाओं के अनुरूप क्रियाशील रखने, राष्ट्र निर्माताओं के सपने पूर्ण करने तथा 130 करोड़ लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप देश को विश्व में उसका विशिष्ट स्थान स्थापित करने में सहायक होगा।
गुलामी के दौर में देश को एक सूत्र में पिरोने वाले एवं अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी तथा देश की आजादी के अनेकानेक शहीदों को नमन एवं श्रद्धांजलि।
एक बार पुन: गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं सहित....