नई दिल्ली ।  सुप्रीम कोर्ट ने 23 साल पुराने एक रेप केस में आरोपी की सजा रद्द कर दी है। ‎मिली जानकारी के अनुसार उच्चतम न्यायालय ने कहा कि घटना के वक्त पीड़िता बालिग थी और दोनों के बीच आपसी सहमति से संबंध बने थे। जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस सी.टी. रवि कुमार और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में नाकाम रहा की घटना के वक्त लड़की की उम्र 16 साल से कम थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां तक बात रेप की है, हमें ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जिससे साबित होता हो कि याचिकाकर्ता और आरोपी के बीच शारीरिक संबंध बने, भले ही यह आपसी सहमति से हुआ या गैर सहमति से। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने पीड़िता की उम्र की ढंग से जांच ही नहीं की। उम्र का पता स्कूल रजिस्टर और ट्रांसफर सर्टिफिकेट से चलता, लेकिन न्यायालय के सामने यह रखा ही नहीं गया। अदालत ने कहा मेडिकल रिपोर्ट में भी पीड़िता की उम्र 16 साल बताई गई है। उसकी मां का कहना भी यही है और खुद लड़की को 16 साल का बताया है। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की उम्र 16 साल से कम रही होती, तब सहमति वाले बिंदु को नजरअंदाज किया जा सकता था और रेप का मामला बनता, लेकिन मेडिकल रिपोर्ट से पता लगता है कि घटना के वक्त लड़की की उम्र 16 साल से ज्यादा थी। बता दें कि साल 2012 में सहमति की उम्र 16 से बढ़ाकर 18 साल की गई थी।
दरअसल यह पूरा वाकया साल 2000 का है। ‘बार एंड बेंच’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक घटना पीड़िता की बहन के ससुराल में हुई थी। पहले तो परिवार वालों ने पीड़िता और आरोपी की शादी कराने की कोशिश की। बाद में आरोपी के परिजनों ने यह कहते हुए इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया कि लड़की उम्र महज 16 साल है। इसके बाद आरोपी के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज कराया गया था। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को रेप का दोषी माना और 7 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी। बाद में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने भी सजा को बरकरार रखा। इसके बाद आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।