लखनऊ । यूपी में अखिलेश यादव के सामने चुनौती काफी बढ़ गई है। उनकी रणनी‎ति बुरी तरह से फैल हो गई है। हालां‎कि राज्यसभा चुनाव को लेकर अखिलेश यादव की रणनीति पर सवाल उठाए जाने लगे हैं। भले ही अखिलेश अब कार्रवाई की बात कर रहे हैं, ले‎किन उनके चाचा शिवपाल यादव बागी विधायकों को भटकती आत्मा और राम गोपाल यादव कुकुरमुत्ता कहकर संबोधित कर रहे हैं। लेकिन पार्टी को एकजुट रखने में नाकामयाबी का सेहरा तो अखिलेश यादव के ही सिर बंधेगा। संख्या बल के आधार पर सपा आराम से तीन उम्मीदवारों को जिता ले जाती, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की सधी हुई राजनीति ने पार्टी को हार की तरफ धकेल दिया। अखिलेश यादव को लेकर अब कहा जा रहा है कि उन्होंने लड़ाई सही तरीके से लड़ी ही नहीं। यही कारण रहा कि पार्टी को बुरी हार का सामना करना पड़ा। इससे पहले भी अखिलेश को यूपी नगर निकाय चुनाव 2023 में करारी हार का सामना करना पड़ा था। इस प्रकार दूसरे चुनाव में भी पार्टी बुरी तरह से हारी है।
प्रदेश में पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए की राजनीति करने की बात करने वाले अखिलेश पर राज्यसभा उम्मीदवारों के चयन को लेकर सवाल किया गया। इस दौरान आलोक रंजन और जया बच्चन पर सवाल किए गए। पूर्व आईएएस आलोक रंजन और फिल्म अभिनेत्री जया बच्चन से पार्टी को फायदा मिलने पर सवाल किया गया। पार्टी विधायकों के इस प्रकार के सवालों ने अखिलेश यादव की पार्टी पर पकड़ को सवालों के घेरे में ला दिया है। पार्टी विधायकों को एकजुट रखने को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं।
हालां‎कि राज्यसभा चुनाव को लेकर भाजपा और सपा की रणनीति बिल्कुल अलग रही। भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव से पहले लगातार बैठकें की। संगठन के स्तर पर विधायकों को ट्रेनिंग दी गई। सीएम योगी आदित्यनाथ ने डिनर डिप्लोमेसी के जरिए विधायकों को रणनीति समझाई। यही वजह रही कि भाजपा के छह उम्मीदवारों को 38 वोट मिले। आरपीएन सिंह जीत के लिए जरूरी 37 वोट पाए। वहीं, भाजपा के आठवें उम्मीदवार संजय सेठ के पक्ष में 29 वोट पड़े। इसके बाद दूसरी वरीयता के वोटों में भाजपा के आठवें उम्मीदवार ने बाजी मार ली। सपा की ओर से अखिलेश यादव ने भी डिनर डिप्लोमेसी के जरिए विधायकों को जीत का समीकरण समझाया था, ले‎किन वह काम नहीं आया।