शहर में बीते पांच सालों में काटे जा चुके हैं हरे-भरे लाखों पेड


भोपाल । शहर में अधोसंरचना विकास के नाम पर पेड़ों की बलि चढाने का कार्य बदस्तूर जारी है। बीते पांच सालों में लाखों की संख्या में हरे-भरे पेडों कों काटा जा चुकी है। इसी तरह से धीरे-धीरे राजधानी की हरियाली समाप्त होती जा रही है। बीते दिनों बैरागढ़ स्थित एमपी स्टेट रोडवेज परिसर में निर्माण कार्य का बहाना बताकर 100 से अधिक पेड़ काट दिए गए। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसकी शिकायत बड़े अधिकारियों से की, लेकिन इसका भी कोई असर नहीं हुआ। जबकि आंकड़े बताते हैं के किस प्रकार विकास के नाम पर शहर की हरियाली पर कुल्हाड़ी चलाई जा रही है। यहां बीते पांच साल में तीन लाख से अधिक पेड़ काट दिए गए। इससे शहर के तापमान में वृद्धि के साथ हरियाली में गिरावट आइ है। पर्यावरणविद सुभाष सी पांडे ने बताया कि हाल ही में किए गए शोध में उन्होंने पाया है कि बीते दस सालों में निर्माण कार्यो को लेकर जिस प्रकार से पेड़ काटे गए हैं। उससे भोपाल की हरियाली में 26 फीसदी की कमी आई है। उससे भी चौकानें वाली बात है कि बीते तीन सालों में इसमें 15 फीसदी की गिरावट आई है। व्यापक स्तर पर पेड़ों की कटाई वाले 9 स्थानों पर 225 एकड़ ग्रीन कवर के सफाए के बाद वहां कांक्रीट के जंगल बना दिए गए। भोपाल में पड़ रही भीषण गर्मी का सबसे बड़ा कारण यही है। क्योंकि इसी वजह से यहां औसत तापमान 5 से 7 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है। शहर के पर्यावरण को सर्वाधिक नुकसान सात साल यानी 2014 से 2021 के बीच हुआ है। इसी समय लगभग 80 फीसदी पेड़ काटे गए। जबकि 20 फीसद पेड़ों की कटाई 2009 से 2013 के बीच हुई है। सुभाष सी पांडे के अनुसार, इस रिपोर्ट को प्रोफेसर राजचन्द्रन की वर्ष 2016 की रिपोर्ट में प्रकाशित शोध, गुगल इमेजनरी और अन्य सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण से तैयार किया गया है। इसके लिए शहर को 15 प्रमुख क्षेत्रों में बांटा गया और तीन सड़कों (बीआरटीएस होशंगाबाद रोड, कलियासोत डेम की ओर जाने वाली रोड एवं नार्थ टीटी नगर की स्मार्ट रोड) को सैंपल के रूप में लिया गया। इन सड़कों के पास मौजूद प्रमुख 11 इलाकों के 345 एकड़ क्षेत्र का विश्लेषण करने पर पता चला कि 10 वर्ष में यहां की हरियाली पूरी तरह से समाप्त कर दी गई है। सिर्फ 11 क्षेत्र में ही 50 साल पुराने 1.55 लाख से अधिक पेड़ काटे गए। विकास के नाम पर पेड़ों की बलि दी जा रही है। हालांकि, इन पेड़ों को विस्थापित कर कलियासोत, केरवा व चंदनपुरा आदि जंगलों में लगाने के दावे किए गए। लेकिन अधिकारियों की लापरवाही से इसमें भी सफलता नहीं मिली। इन पेड़ों ने कुछ ही दिनों में दम तोड़ दिया। जबकि अधिकारी पेड़ों के बदले चार गुना तक पौधे लगाने के दावा करते रहे हैं। लेकिन जब ये बड़े होकर पेड़ बनेंगे तब तक तो पर्यावरण का काफी नुकसान हो चुका होगा। शहर की हरियाली धीरे-धीरे उजड़ जाएगी। इस बारे में नगर निगम  के अपर आयुक्त पवन सिंह का कहना है कि शहर में जहां भी विकास कार्यों को लेकर पेड़ो की कटाई होती है। उसके एवज में दूसरे स्थानों पर पेड़ लगाए जाते हैं। इसके लिए नगर निगम संबंधित निर्माण संस्था से क्षतिपूति राशि भी जमा करवाता है। शहर में हरियाली बनाए रखने के लिए नगर निगम निरंतर प्रयास कर रहा है।