जिनेवा । जर्मनी, फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश एकतरफा रूस का विरोध कर रहे हैं तो वहीं भारत और चीन लगातार शांति की अपील कर रहे हैं। दोनों ही देशों ने रूस की खुलकर आलोचना करने से परहेज किया है, लेकिन शांति की अपील भी की है। एक तरफ पश्चिमी देश रूस को पीछे हटकर शांति बहाल करने की बात कर रहे हैं तो भारत और चीन ने रूस के सुरक्षा हितों का भी ख्याल रखने की बात करते हुए शांति प्रस्ताव दिए हैं। इस तरह यह पूरा मामला एशिया बनाम यूरोप-अमेरिका होता दिखा है।
हाल ही में व्लादिमीर पुतिन ने पश्चिमी देशों की पाबंदियों का जिक्र करते हुए कहा था कि अब हम एशियाई बाजार पर फोकस करेंगे। उन्होंने कहा था कि लालची और स्वार्थी पश्चिमी देशों की बजाय एशिया पर हमारा फोकस रहेगा। उनकी इस टिप्पणी को भारत और चीन जैसे देशों के लिए संकेत माना गया था। वहीं अब भारत और चीन ने एक बार फिर से रूस को ताकत दी है।
संयुक्त राष्ट्र में युद्ध की बरसी से ठीक पहले यूक्रेन युद्ध को रोकने का प्रस्ताव पारित किया गया है। इसमें बिना शर्त रूस से पीछे हटने को कहा गया है। संयुक्त राष्ट्र से यह प्रस्ताव बड़े बहुमत से पारित हो गया है, लेकिन भारत और चीन ने गैरहाजिर रहकर एक तरह से रूस को ही ताकत दी है। यूएन के 193 सदस्यों में से 141 मेंबर्स ने प्रस्ताव के समर्थन में वोट दिया। वहीं 7 ने इसका विरोध किया है, जिनमें खुद रूस और उसका पड़ोसी देश बेलारूस शामिल है। इसके अलावा उत्तर कोरिया, माली, निकारागुआ और सीरिया ने भी प्रस्ताव का विरोध किया है। यही नहीं 32 देश मतदान से दूर ही रहे, जिनमें भारत और चीन शामिल हैं। अब तक भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ पेश किए गए प्रस्तावों से दूरी ही बनाई है। हालांकि पीएम नरेंद्र मोदी कई बार यह कह कर युद्ध समाप्ति की अपील कर चुके हैं कि आज का दौर युद्ध का नहीं, बल्कि शांति का है।
चीन ने रूस और यूक्रेन से शांति वार्ता की अपील भी की है। चीन ने कहा कि दोनों देशों को बातचीत करनी चाहिए और हर प्रयास हो कि न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल न किया जाए। चीन के विदेश मंत्रालय का कहना है कि सभी देशों को कोशिश करनी चाहिए कि यूक्रेन और रूस बातचीत की मेज पर आएं। व्लादिमीर पुतिन कई बार जंग में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकी भी दे चुके हैं।