झाबुआ बस स्टैंड पर गुजरात और राजस्थान की बसों पर लगी रोक
झाबुआ । झाबुआ में अफसरों व बस संचालकों के गठबंधन ने लोक परिवहन व्यवस्था को ध्वस्त करके रख दिया है। पहले मध्यप्रदेश राज्य परिवहन निगम पर ताले लगे। इसके बाद जिले में लगातार पड़ोसी राज्यों की बसों को टारगेट किया जाने लगा। कभी उनके चालक-परिचालक के साथ मारपीट तो कभी गाली-गलौज करने की घटना नियमित होने लगी। वर्तमान में स्थिति यह है कि गुजरात राज्य परिवहन निगम की यात्री बसों को झाबुआ बस स्टैंड पर आने ही नहीं दिया जाता है। इस तरह की धमकी दी जाती है कि वे सहम जाते हैं। कुछ रहवासी इस मामले में लगातार आवाज भी उठाते रहे हैं, मगर जिला प्रशासन ने कभी उनकी पीड़ा को गंभीरता से लिया ही नहीं। राजस्थान की इंदौर-डूंगरपुर बंद हो चुकी है, जो आम जनता की दृष्टि से बहुपयोगी थी। गुजरात की बसें शहर के बाहर से ही खाली निकल जाती हैं। उसके चालक-परिचालक सवारी बैठाने में डरते हैं। गुजरात के दाहोद, वड़ोदरा, अहमदाबाद आदि स्थानों पर बड़ी आबादी को आने-जाने में दिक्कत होती है। अधिकांश तो स्वास्थ्य सेवा के कारण वहां की यात्रा करने को मजबूर होते हैं।
अफसर मौन रहकर सबकुछ देख रहे
इस संपूर्ण मैदानी हकीकत की वजह सिर्फ एक ही है, वह है निजी बस संचालकों का वर्चस्व। जिले की लोक परिवहन व्यवस्था पर निजी क्षेत्र अपना आधिपत्य जमा रहा है। अफसर मौन रहकर सब कुछ चलने देते हैं, इसीलिए दिखावे के लिए हमेशा कहा जाता है कि अंतरराज्यीय सरकारी बसों को सुरक्षा देंगे, मगर जब मामले हिसंक विवाद तक पहुंचता है तो जानबूझकर ढिलाई बरती जाती है। माहौल कुछ इस तरह का निर्मित हो जाता है, जिससे पीड़ित ही भयभीत होता है।
यात्री बस हादसे के बड़े कारण
- निजी व्यवस्था हावी
- सरकारी बसों को चलने नही दिया गया
- गुजरात-राजस्थान की सरकारी बसें टारगेट पर
- गठबंधन नहीं दे पा रहा सुरक्षा
- यात्री बसों की गति पर कोई अंकुश नहीं
रसूखदारों का कब्जा
दो दशक पूर्व जब आर्थिक कारणों के चलते मध्यप्रदेश राज्य परिवहन निगम बंद हुआ तो जिले से गुजरने वाली 14 रूट की बसों पर रसूखदारों ने कब्जा कर लिया। इंदौर से अहमदाबाद व इंदौर से झाबुआ होकर वड़ोदरा के रूट की बसें प्रमुख थीं। अनुबंधित के रूप में प्रभावशाली इन लाइनों पर अपनी बसें सरपट दौड़ाने लगे। सवारी गुजरात की बसों में बैठना अधिक पसंद करती हैं तो उनके वाहनों को रोकने की कोशिश होने लगी। स्थिति यह है कि राजस्थान की दो बसें बंद हो चुकी हैं। गुजरात की आठ बसें चल रही हैं, मगर उनको कभी बस स्टैंड पर आने से तो कभी रास्ते में सवारी बैठाने पर धमकाया जाता है।
कई बार मांग रखी गई
- रहवासी कृष्णा पारिक का कहना है कि इस मामले में उन्होंने कई बार लिखित मांग रखी है। भरोसा दिलवाया गया,लेकिन बस स्टैंड पर गुजरात व राजस्थान की यात्री बसों का सुचारु संचालन नहीं होने दिया गया। अधिकारी आम जनता की इस समस्या को गंभीरता से नहीं लेना चाहते।
- रहवासी बीएस चौहान का मानना है कि अपने उपचार के लिए दाहोद-वड़ोदरा आदि स्थानों पर बड़ी संख्या में लोगों को आना-जाना पड़ता है। मरीज भर्ती होता है तो उसके स्वजन भी बार-बार आना-जाना करते हैं। अब ऐसे में गुजरात की सरकारी बसों का संचालन ढंग से नहीं होने दिया जाता है तो आम जनता बहुत संघर्ष झेलती है।
- वरिष्ठ नागरिक मनोहर भट्ट का मानना है कि निजी कब्जे को बढ़ावा मिलने से हादसे बढ़ रहे हैं। सुनियोजित योजना के तहत पहले प्रदेश की सरकारी व्यवस्था ठप की गई। इसके बाद जिले से सटे राज्यों की बसों के संचालन को खत्म किया जा रहा है, ताकि निजी आधिपत्य जमा रहे।
ध्यान दिया जाएगा
झाबुआ की यातायात प्रभारी कौशल्या चौहान का कहना है कि इस मामले में ध्यान दिया जाएगा।