देहरादून । बदरीनाथ धाम के कपाट होते ही चारधाम यात्रा का रविवार को समापन हो गया। कपाट रविवार को रात 9.07 बजे भगवान बद्री विशाल के कपाट बंद हुए। कपाट बंद होने से पहले पंच दिवसीय पंच पूजा की शुरुआत हुई थी, जो 17 नवंबर को खत्म हुई। इस साल अब तक 14 लाख 20 हजार से अधिक श्रद्धालु भगवान बदरीनाथ के दर्शन कर चुके हैं। मंदिर को रंग-विरंगे फूलों से सजाया गया था।  उत्तराखंड में गंगोत्री, यमुनोत्री व केदारनाथ के कपाट पहले ही बंद हो चुके हैं। अब भगवान बदरी विशाल के कपाट शीतकाल के लिए बंद किए गए। कपाट बंद होने से पहले पंच पूजा की शुरुआत हुई।   पंचपूजाओं के तहत पहले दिन गणेश जी की पूजा अर्चना की गई। सायं को गणेश मंदिर के कपाट भी शीतकाल के लिए बंद किए गए। 14 नवंबर को नारायण मंदिर के सामने आदिकेदारेश्वर मंदिर व शंकराचार्य मंदिर के कपाट भी विधि विधान से बंद कर दिए गए। 15 नवंबर को खड़क पुस्तक पूजन के साथ बदरीनाथ मंदिर में वेद ऋचाओं का वाचन बंद हुआ। 16 नवंबर को मां लक्ष्मी की कढ़ाई भोग चढ़ाया गया और 17 नवंबर को भगवान नारायण के कपाट बंद किए गए।


कपाट बंद होने के मौके पर 10 हजार श्रद्धालुओं ने किए दर्शन 
कपाट बंद होने के मौके पर धाम में पहुंचे लगभग 10 हजार श्रद्धालुओं ने बदरीनाथ के दर्शन किए। कपाट बंद होने के बाद बदरीनाथ धाम जय बदरीविशाल के उद्घोष से गूंज उठा। बदरीनाथ मंदिर को 15 क्विंटल फूलों से सजाया गया है। रविवार को दिनभर बदरीनाथ मंदिर श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खुला रहा। पूर्व की भांति सुबह साढ़े चार बजे बदरीनाथ की अभिषेक पूजा शुरू हुई। बदरीनाथ का तुलसी और हिमालयी फूलों से श्रृंगार किया गया। अपराह्न छह बजकर 45 मिनट पर बदरीनाथ की सायंकालीन पूजा शुरू हुई। देर शाम सात बजकर 45 मिनट पर रावल (मुख्य पुजारी) अमरनाथ नंबूदरी ने स्त्री वेष धारण कर लक्ष्मी माता को बदरीनाथ मंदिर में प्रवेश कराया। बदरीश पंचायत (बदरीनाथ गर्भगृह) में सभी देवताओं की पूजा अर्चना व आरती के बाद उद्धव जी व कुबेर जी की प्रतिमा को गर्भगृह से बाहर लाया गया। रात आठ बजकर 10 मिनट पर शयन आरती हुई। उसके बाद कपाट बंद होने की प्रक्रिया शुरू हुई।