भोपाल । मप्र में भाजपा और कांग्रेस की द्विदलीय राजनीति में मुस्लिम वोट का ग‎णित अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण भू‎मिका ‎‎निभाने वाला है। इसमें कम से कम 22 सीट पर मु‎‎स्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के वोट अहम साबित हो सकते हैं। कांग्रेस से संबंध रखने वाली मध्यप्रदेश मुस्लिम विकास परिषद के समन्वयक मोहम्मद माहिर ने कहा कि 2018 के विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी का मत प्रतिशत कम से कम तीन से चार प्रतिशत बढ़ा, जिसके कारण वह भाजपा से थोड़ा आगे निकल गई। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की मप्र इकाई के प्रमुख कमलनाथ ने 2018 में कहा था कि अगर 90 फीसदी अल्पसंख्यक वोट पार्टी के पक्ष में आते हैं तो पार्टी सरकार बना सकती है। माहिर ने कहा ‎कि कमलनाथ की अपील पर अल्पसंख्यकों के वोट कांग्रेस को मिले और इसका परिणाम यह हुआ कि पार्टी की झोली में 10-12 सीट और जुड़ गईं, जिन्हें पार्टी 2008 और 2013 में जीतने में विफल रही थी।
पूर्ववर्ती चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत 41.02 प्रतिशत था जो कांग्रेस के 40.89 प्रतिशत से थोड़ा अधिक रहा था, लेकिन कांग्रेस 230 सीट में से 114 सीट पर जीत हासिल कर सबसे अधिक सीट हासिल करने वाली पार्टी बनी थी, जबकि भाजपा को 109 सीट मिली थीं। इसके बाद कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी, लेकिन कुछ विधायकों के दल बदल लेने के कारण 15 महीने बाद यह सरकार गिर गई थी। माहिर ने कहा ‎कि मध्य प्रदेश में जब मतदाता भाजपा से नाराज होते हैं, तो वे कांग्रेस सरकार को चुनते हैं और इसी प्रकार कांग्रेस से मतदाताओं के नाराज होने पर भाजपा की सरकार बनती है।
उन्होंने कहा ‎कि वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक मध्य प्रदेश में मुस्लिम आबादी सात फीसदी है जो अब संभवत: नौ-10 फीसदी होनी चाहिए। मुस्लिम वोट 47 विधानसभा सीटों पर अहम हैं लेकिन 22 क्षेत्रों में वे निर्णायक कारक हैं। इन 47 सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 5,000 से 15,000 के बीच हैं, जबकि 22 विधानसभा क्षेत्रों में इनकी संख्या 15,000 से 35,000 के बीच है। उन्होंने कहा ‎कि इसका मतलब यह है कि कांटे की टक्कर की स्थिति में 22 सीट पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। इन सीट में भोपाल की तीन, इंदौर की दो, बुरहानपुर, जावरा और जबलपुर समेत अन्य क्षेत्रों की सीट शामिल हैं।