भोपाल । 2020 में सत्ता छिनने के बाद से ही पूर्व मुख्यमंत्री और पीसीसी अध्यक्ष कमलनाथ निरंतर इस कोशिश में लगे हैं कि कांग्रेस एकजुट होकर आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को मात देकर सरकार बनाए। इसके लिए वे लगातार सक्रिय हैं और पूरी पार्टी को एकजुट करने में जुटे हुए हैं। लेकिन उनके मिशन में भाजपा से पहले कांग्रेसी ही बाधा डाल रहे हैं। खासकर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और उनके समर्थक नेता कमलनाथ के मिशन का बंटाधार कर रहे हैं।विधानसभा चुनाव को करीब 9 माह का समय ही बचा है। ऐसे में सभी पार्टियों का फोकस संगठन को मजबूत कर चुनाव की तैयारी में जुटना है। कमलनाथ भी इसी अभियान में लगे हुए हैं। ऐसे में दिग्विजय समर्थक दो नेताओं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव और जीतू पटवारी ने कमलनाथ को सवालों के घेरे में लाकर पार्टी को बैकफुट ला दिया है। माना जा रहा है की इसके पीछे  दिग्विजय सिंह की सोची-समझी रणनीति है।

मौका चुनावी तैयारी का राग सीएम का
यह समय चुनावी तैयारी का है। सभी पार्टियां चुनाव की तैयारी में जुटी हुई है। लेकिन सत्ता में वापसी की तैयारी में जुटी कांग्रेस के नेताओं में वर्चस्व की जंग छिड़ी हुई है। दरअसल, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को भावी सीएम के रूप में पेश कर रही प्रदेश कांग्रेस को उनके ही दो पूर्व मंत्रियों ने झटका दे दिया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने साफ कर दिया कि कांग्रेस पार्टी ने अभी सीएम का चेहरा तय नहीं किया है। सीएम पर फैसला चुनाव परिणाम आने के बाद पार्टी आलाकमान करता है। यही बात पूर्व मंत्री जीतू पटवारी भी दोहरा चुके हैं। लेकिन जब इस पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से सवाल किया तो वे बचकर निकल गए। बोले- मुझसे अरुण यादव ने कुछ नहीं पूछा। ज्ञात रहे कि पूरी प्रदेश कांग्रेस कमलनाथ को भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर रही है। बैनर, होडिंग्स और पोस्टर में उन्हें अगला मुख्यमंत्री बताया जा रहा है। लेकिन उनके नाम को लेकर पार्टी में ही सभी नेता एक मत नहीं हैं। पूर्व मंत्री यादव ने साफ कहा कि अभी नाथ पीसीसी चीफ हैं और हमारा नेतृत्व कर रहे हैं लेकिन विधानसभा चुनाव में सफलता मिलने के बाद तय होगा कि सीएम कौन बनेगा। इस मामले में भोपाल में मौजूद दिग्विजय सिंह से मीडिया ने सवाल किया तो वे सवाल का सीधा जवाब देने से बचकर निकल गए।

कमलनाथ और जीतू पटवारी में ठनी
यह समय कांग्रेस का एकजुट होकर भाजपा से मैदानी जंग का है। लेकिन ऐसी समय में भी दिग्विजय समर्थक दो नेता कमलनाथ को घेरने में लगे हुए हैं। खासकर जीतू पटवारी ने तो नाथ के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया है। एक तो इंदौर शहर कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर पार्टी में जबरदस्त घमासान चल रहा है। ये घमासान भी किसी और के नहीं बल्कि पीसीसी चीफ कमलनाथ और जीतू पटवारी के बीच हो रहा है। मामला इतना बढ़ चुका है कि अब इंदौर का मसला दिल्ली तक पहुंच गया है। और वहां लॉबिंग हो रही है। एक तरफ राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का समापन दूसरी ओर मध्यप्रदेश में कांग्रेस नेताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई। प्रदेश के सबसे बड़े शहर इंदौर में कांग्रेस के शहर अध्यक्ष को लेकर नेताओं के बीच घमासान जारी है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मंत्री जीतू पटवारी ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। अपने करीबी नेता को शहर अध्यक्ष बनवाने के लिए भोपाल नहीं बल्कि दिल्ली में लॉबिंग की जा रही है। वहीं दूसरी ओर अभी अरुण यादव के बयानों पर कमलनाथ के मैनेजर डैमेज कंट्रोल कर ही रहे थे कि जीतू पटवारी ने यह कहकर कमलनाथ की रणनीति पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया कि वे अभी भी प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बने हुए हैं। जीतू पटवारी का तर्क है कि उनकी नियुक्ति राष्ट्रीय स्तर पर की गई है। उदयपुर में की गई घोषणा के अनुसार यह नियुक्ति 5 वर्ष तक चलेगी। इसलिए वे अभी भी कार्यकारी अध्यक्ष हैं। जीतू पटवारी का बयान स्पष्ट रूप से कमलनाथ के खिलाफ बगावत है, क्योंकि हाल ही में प्रदेश कांग्रेस कमेटी का जो पुनर्गठन किया गया उसमें जीतू पटवारी को उपाध्यक्ष बना दिया गया है। प्रदेश कांग्रेस ने ऐलान करके कार्यकारी अध्यक्ष प्रणाली को समाप्त करने की घोषणा की थी। इसी कारण चारों कार्यकारी अध्यक्षों को प्रदेश में उपाध्यक्ष की जवाबदारी दी गई है। जीतू पटवारी इससे संतुष्ट नहीं है क्योंकि प्रदेश में 55 उपाध्यक्ष हैं इस संख्या में और इजाफा होने की आशंका है। ऐसे में उन्हें भीड़ में पदाधिकारी बनने में कोई रुचि नहीं है।

दोनों के पीछे दिग्विजय...
देश और प्रदेश की राजनीति में कमलनाथ का कद इतना बड़ा है कि कोई प्रादेशिक स्तर का कांग्रेसी नेता उनके खिलाफ मोर्चा खोलने में सौ बार सोचेगा। ऐसे में माना जा रहा है की अरुण यादव और जीतू पटवारी की मोर्चाबंदी के पीछे दिग्विजय सिंह का हाथ है। अरुण यादव और जीतू पटवारी दिग्विजय सिंह के कट्टर समर्थक हैं। इसलिए इस पर कोई विश्वास नहीं करेगा कि ये दोनों नेता अपने मन से खुलेआम कमलनाथ के खिलाफ बयान बाजी करें? जाहिर है जब तक दिग्विजय सिंह की ओर से संकेत नहीं मिलेगा यह नेता शक्तिशाली कमलनाथ के खिलाफ आगे नहीं बढ़ सकते। अरुण यादव और जीतू पटवारी ही नहीं दिग्विजय सिंह के अनुज लक्ष्मण सिंह और नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह भी समय-समय पर कमलनाथ के खिलाफ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष बयान देते रहते हैं। कमलनाथ और गोविंद सिंह के बीच तकरार तब सामने आई थी जब गोविंद सिंह ने मानसून सत्र के दौरान बिना कमलनाथ की सहमति के अविश्वास प्रस्ताव लाने का ऐलान किया था। कमलनाथ इस एलान से इतने असहज हो गए कि उन्होंने विधानसभा सत्र में भाग ही नहीं लिया। इस तरह अविश्वास प्रस्ताव महज एक नाटक बनकर रह गया। समय-समय पर दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बीच भी तल्खी सामने आती रही है लेकिन यह दोनों अत्यंत अनुभवी और परिपक्व नेता हैं। इस कारण से इनके मतभेद सतह पर नहीं आते हैं, लेकिन समय-समय पर इनके समर्थक बयानबाजी करते रहते हैं। दिग्विजय सिंह के खिलाफ भी कमलनाथ समर्थक सज्जन सिंह वर्मा और उमंग सिंगार ने अतीत में कई बार तीखी बयानबाजी की है। राहुल गांधी  की  भारत जोड़ो यात्रा का जब समापन हुआ तो उसके बाद राहुल गांधी ने मीडिया के समक्ष कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को गले लगने के लिए कहा था। यह इस बात का संकेत था कि दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बीच संबंध सामान्य नहीं है।

नाथ ही एकला चलो नीति पसंद नहीं
दरअसल कमलनाथ कांग्रेस में अपनी मर्जी से काम कर रहे हैं। उनकी यह एकला चलो नीति अन्य नेताओं को पसंद नहीं आ रही है। सूत्रों के अनुसार कमलनाथ की स्वतंत्र कार्यशैली से राहुल गांधी खुश नहीं बताए जाते हैं। इन दिनों दिग्विजय सिंह राहुल गांधी के अधिक नजदीक हैं। कमलनाथ जिस तरह से हिंदुत्व का कार्ड खेलते हैं उसे भी राहुल गांधी पसंद नहीं करते। कांग्रेस के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब किसी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने बाकायदा सर्कुलर जारी कर यह निर्देश दिया कि कांग्रेस कार्यालयों में हनुमान चालीसा का पाठ किया जाए। इस तरह के सर्कुलर कांग्रेस में कभी नहीं दिए गए। हिंदुत्व के मुद्दे पर भी दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बीच तीखे मतभेद हैं। अरुण यादव और जीतू पटवारी की बयानबाजी से स्पष्ट है कि कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर घमासान मचेगा। कमलनाथ के लिए दिग्विजय सिंह चुनौती साबित हो सकते हैं।