वाशिंगटन  । हमें कोरोना महामारी जैसी अप्रत्याशित स्थिति से निपटने के लिए समय मिले सके। ऐसी विडम्बनाओं के आने पर हमें कहां शरण लेनी चाहिए या क्या हम ऐसे शरण स्थल बना सकते हैं जो हमें इस तरह के आपदा से कुछ समय के लिए राहत दे सके। महामारी के दौरान चीन और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया पर हुए अध्ययन ने ऐसे सवालों के जवाब दिए हैं। विराट संकट या आपदा की स्थिति में किसी सुदूर द्वीप, गहरे पानी या यहां तक कि चंद्रमा पर भी एक सुरक्षित जगह, जहां इंसान सुरक्षित और जिंदा रह सकें, की तलाश हमेशा से ही एक विकल्प के तौर पर देखा जाता रहा है।
किसी विकराल महामारी इस तरह की रणनीति हमेशा ही प्रस्तावित की जाती रही है। एक शोधपत्र के असार कोविड-19 महामारी ने दर्शाया  कि ऐसा ही एक शरण स्थल एक अच्छा विचार है और उसके लिए जरूरी नहीं कि वह बहुत अलग या दूर स्थित  हो। इस शोध  के लेखकों ने पड़ताल कर अपने विश्लेषण में पाया  कि कैसे और क्यों चीन और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया महामारी के पहले दो साल के दौरान प्रभावी शरण स्थल साबित हुए थे। तस्मानिया यूनिवर्सिटी की भूगोलविद वेनेसा एडम्स और वॉशिंगटन डीसी के ग्लोबल कैटेस्ट्रॉफिक रिस्क इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक और भूगोलविद सेथ बाम ने चीन और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के मामले की पड़ताल की जो दो राजनैतिक सीमाओं की साझा करते हैं और लेकिन फिर भी कोविड-19 संक्रमण के स्तरों को बहुत कम रखने में सफल रहे।
मार्च 2020 से लेकर जनवरी 2022 तक चीन में प्रति एक लाख लोगों में 1358 लोग संक्रमित हुए थे जबकि उसी दौरान अमेरिका में 98556 और भारत में 142365 लोग कोविड संक्रमण का शिकार हुए थे। इसके साथ ही पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में प्रति एक लाख व्यक्ति 48.8 संक्रमण हुए थे। यह एक चौंकाने वाला आंकड़ा है क्योंकि इस दौरान वैक्सीन भी दुनिया में आई और बहुत से लोगों को वैक्सीन के दोनों डोज भी लगे थे। पिछले शोध ने दर्शाया है कि जिस तरह से द्वीप वाले देश जैसे आइसलैंड, ऑस्ट्रेलाय और न्यूजीलैंड ने महामारी के पहले नौ महीनों ने कोविड-19 संक्रमण संख्या को कम रखा गया था, वे इस तरह के शरण स्थल बनने के अच्छे उम्मीदवार है। महामारी शरण स्थल वह इलाका हो सकता है जहां संक्रमण का जोखिम बहुत ही कम और रोगाणु बहुत प्रसारित नहीं हो पाए हैं।इस नए अध्ययन, जिसमें दो दशकों के समय लगा था, ने सुझाया है कि भौगोलिक पृथकता या द्वीप होना ही ऐसी शरण स्थली की जरूरी शर्त नहीं है।
बाम का कहना है कि चीन इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण है जो दुनिया के सबसे लंबी जमीनी सीमा साझा करने वाला देश है लेकिन फिर भी वह इसी तरह से काफी सफल रहा है। शोधकर्ताओं न चीन और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया दोनों के अंतर और समानताओं का अध्ययन किया।शोध में पाया कि चीन जहां बहुत ज्यादा लोगों वाला तानाशाही इलाका है, वहीं पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया लोकतांत्रिक विरल जनसंख्या और दुनिया के अलग-थलग इलाकों में से एक है। लेकिन इस मामले में दोनों ने ही एक ही से नतीजे दिए हैं। दोनों में ही उच्च स्तर का केंद्रीकृत और अलग होने की क्षमता है।