पेरिस । इस बार मैक्रों की जीत आसान नहीं थी। उन्हें एक बार फिर दक्षिणपंथी मरीन ली पेन से चुनौती मिली थी। इस बार मैक्रों की जीत का अंतर कुछ कम था जिससे पता चलता है कि उनके लिए यह चुनाव कितना मुश्किल था। 
उससे भी ज्यादा मुश्किल मैक्रों के लिए आने वाला समय है। उन्हें अपनी नीतियों में कई तरह के बदलाव लाने होंगे और ऐसा उन्हें जल्दी ही करना होगा। अपनी जीत के बाद मैक्रों ने जो कहा वह भी यही बताता है कि उनके लिए आने वाला समय चुनौती भरा है। उन्होंने कहा मैं जानता हूं कि बहुत से देशवासियों ने मुझे वोट मेरे विचारों के समर्थन के लिए नहीं  बल्कि इसलिए दिया है क्योंकि वे चरम दक्षिणपंथियों को सत्ता में आने से रोकना चाहते थे। 
उन्होंने कहा कि इस जीत ने मुझे एक जिम्मेदारी दी है। फ्रांस में चुनाव से पहले ही माना जा रहा था कि बहुत से लोग मैक्रों के तौर तरीकों और उनके कार्यक्रमों से नाराज थे, लेकिन फिर भी उन्होंने उन्हें वोट दिया। मैक्रों की बाजारोन्मुखी सुधारों का फ्रांस में काफी विरोध हुआ था जिसमें श्रम बाजार का उदारीकरण और सार्वजनिक रेल कंपनी एसएनसीएफ के सुधार शामिल हैं।
मैक्रों पीली बनियान आंदोलन से निपटने में भी प्रभावी नहीं रहे थे और न उससे पैदा हुए आक्रोश से ही वह ठीक से निपट पाए थे। इस आंदलोन में सामाजिक न्याय की मांग करने वालों ने महीनों तक फ्रांस की गलियों और सड़कों को बंद कर दिया था। उन्होंने फ्रांस के लोगों के लिए 48 अरब यूरो वाली बेहतर जीवन की योजना को शुरू कर फिर बंद कर दिया था। इन तमाम बातों के रहते वे राष्ट्रपति बनने में सफल रहे। इसके बाद भी मैक्रों ने इस सबकी कीमत भी चुकाई है। दक्षिणपंथियों को उत्थान और सत्ता में आने से रोकने के लिए जो गणतंत्र मोर्चा बना था,  जिसमें बहुत से लोकतांत्रिक पार्टियां और वोटर भी शामिल थे, वह बिखरने लगा है। कई लोग पेन के खिलाफ थे इसलिए मैक्रों को वोट देने के लिए भी तैयार नहीं थे। ऐसे लोगों ने पहले चरण किसी और को वोट दिया था जिनमें से एक जीन लुक मिलनकोन के समर्थक भी थे जिन्हें पहले चरण में केवल 22 प्रतिशत वोट मिले थे। 
इस बार मैक्रों को दक्षिणपंथियों को रोकने की कठिन चुनौती होगी। मैक्रों ने कई उन वोटर का समर्थन हासिल किया जो पहले चरण में उनके साथ नहीं थे, लेकिन फिर भी बहुत से वोटर मैक्रों के खिलाफ थे या कहें नाराज थे। यही वजह थी कि बहुत से लोगों ने मैक्रों या पेन में एक को चुनने के बजाय मतदान में ही हिस्सा नहीं लिया। यही वजह है कि अब दोबारा चुने जाने पर उन्हें फिर से वामपंथी विचारधारा के समर्थकों को खुश करने के लिए योजनाएं लानी होंगीं। 
उन्हें लोगों में यह संदेश पहुंचाना होगा कि वे जनता के प्रति संवेदनशील हैं, सभी को साथ लेकर चलना चाहते हैं और एक स्वीकार्य योग्य विकल्प हैं। उन्हें ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी पहुंच बनानी होगी। अगर मैक्रों यह सब नहीं कर पाते हैं तो वे दक्षिणपंथियों को ही मजबूत करेंगे। वे ही तय करेंगे कि अगला चुनाव मैक्रों बनाम कोई भी या फिर कोई कोई भी बनाम ली पेन जैसा हो जाएगा। इस साल जून में फ्रांस में संसदीय चुनाव हैं। ऐसे में उनकी प्राथमिकता दक्षिणपंथियों को रोकने की होगी।