जबलपुर : भारत सरकार ने जातिगत जनगणना की घोषणा कर दी है. इसके आंकड़े आने के बाद संभावना जताई जा रही है कि पिछड़ा वर्ग में शामिल जातियों पर इसका असर देखने को मिलेगा. कुछ जातियों को ओबीसी से बाहर करने के साथ ही कुछ जातियों को ओबीसी में शामिल किया जा सकता है. दरअसल, अन्य पिछड़ा वर्ग में उन जातियों को भी शामिल किया गया था, जो पैमाने के अनुसार पिछड़ी रह गई थीं. वहीं, बीते कुछ सालों में कुछ जातियों ने खूब तरक्की की है और आज उनका समाज में स्थान बराबरी का है. इसलिए संभावना जताई जा रही है कि जातिगत जनगणना के बाद कुछ जातियां अन्य पिछड़ा वर्ग से बाहर हो जाएंगी.

कब बना था बीपी मंडल, क्या सिफारिशें की
बता दें कि अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के अलावा अन्य पिछड़ा वर्ग को पहचान दिलाने का काम पहली बार बीपी मंडल ने किया, जिसे मंडल कमीशन के नाम से जाना जाता है. यह कमीशन तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने 1976 में बनाया था. बीपी मंडल 1980 में मध्य प्रदेश आए थे. उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार से भी कहा था कि मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों की गणना होनी चाहिए. उस समय मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने विधायक राम जी महाजन के नेतृत्व में एक कमीशन का गठन किया, जिसे महाजन कमीशन कहा जाता है. इस कमीशन ने मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों का अध्ययन शुरू किया. रामजी महाजन मध्य प्रदेश में पिछड़ा वर्ग आयोग के पहले अध्यक्ष थे.

पिछड़े वर्ग में जाति के शामिल होने की क्या है प्रक्रिया
महाजन कमीशन के दस्तावेज में इस बात का उल्लेख है "हमारे समाज में जातियों की ऊंच-नीच के नियम थे, जो हमारे पुराने धार्मिक ग्रंथों में मिलते हैं." महाजन कमीशन पाया "उन्हीं नियमों के अनुसार समाज में जातियों को स्थान मिला है. समाज में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य के अलावा शूद्र हैं. इसमें से भी कुछ जातियां अछूत और कुछ ऐसी हैं, जिन्हें लोग छू सकते हैं, इन्हें सछूत कहा गया. धार्मिक ग्रंथों के आधार पर जातियों को वर्गीकृत किया गया. महाजन कमीशन ने कुल 92 जातियां अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग में शामिल की थी, इनमें कई उपजातियां थीं, जिन्हें एक समूह के रूप में एक साथ शामिल किया गया था. इनकी संख्या 92 से कहीं अधिक थी."