हिन्दू धर्म में पूजा-पाठ का अत्यधिक महत्व बताया गया है और इसलिए व्यक्ति सिर्फ मंदिरों में जाकर ही ईश्वर की पूजा नहीं करता बल्कि भगवान की प्रतिमा या मूर्ति को अपने घर में भी रखता है. इसके लिए घर में एक छोटा सा स्थान भगवान को दिया जाता है, जहां मंदिर बनवाया जाता है या लकड़ी या अन्य धातु से बना मंदिर रखा जाता है. लेकिन कई बार उसे बदलने की जरूरत महसूस होती है.

लेकिन, वास्तु शास्त्र में मंदिर को घर के सबसे सकारात्मक स्थान के रूप में देखा जाता है और इसके प्रभाव से ही घर में सुख-समृद्धि आती है. ऐसे में जब आप मंदिर को बदल रहे होते हैं तो पुराने मंदिर का क्या करना चाहिए? और नए मंदिर को लाने के लिए किन नियमों का पालन करना चाहिए.

सकारात्मक ऊर्जा का श्रोत
ज्योतिषाचार्य के अनुसा, हमारे घर का मंदिर जहां भगवान की मूर्ति विराजमान होती है और आप सुबह शाम ईश्वर की आराधना करते हैं, वह एक पवित्र स्थान होता है और यहां से सबसे सकारात्मक ऊर्जा मिलती है. ऐसे में जब आप पुराने मंदिर को बदलने का विचार मन में लाते हैं तो इसकी यह सकारात्मक ऊर्जा भी मंदिर के साथ चली जाती है. इसलिए मंदिर को बदलने से पहले आपको कुछ नियमों का पालन करना चाहिए.

पुराने मंदिर का क्या करें?
अपने घर के पुराने मंदिर को बदलते समय आप सबसे पहले देवी-देवताओं की मूर्ति या तस्वीर उठाते हैं. लेकिन यदि आप इनमें से किसी को भी पूरी तरह से ​हटाने चाहते हैं तो उन्हें किसी पुजारी को दे सकते हैं या फिर पेड़ के नीचे रख सकते हैं. इसके अलावा आप इनका विसर्जन कर सकते हैं.

इन बातों का भी ध्यान रखें
जब आप घर में नए मंदिर की स्थापना कर रहे होते हैं तो दिन का विशेष ख्याल रखें. इसके लिए आप सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार जैसे शुभ दिनों का चयन कर सकते हैं. इसके अलावा अन्य दिनों में मंदिर की स्थापना नहीं की जाती है. वहीं नए मंदिर में प्रतिमा या मूर्ति विराजित करने से पहले आपको किसी पंडित या ज्योतिषी को बुलाना चाहिए और फिर मंत्रोच्चार के साथ विधिवत इनकी प्राण-प्रतिष्ठा करवाना चाहिए.