भोपाल। पदोन्नति की आस लगाए अधिकारी-कर्मचारियों का करीब आठ साल का इंतजार खत्म होने जा रहा है। इसके लिए सरकार ने एक फॉर्मूला बनाया है। इसके तहत एसटी और एससी संवर्ग के कर्मियों के लिए 36 फीसदी सीटों को रिजर्व रखते हुए शेष 64 फीसदी पर सामान्य श्रेणी के कर्मियों को प्रोन्नति देने का प्लान है। इससे वर्तमान में कार्यरत अधिकारियों-कर्मचारियों को पदोन्नति का लाभ मिल सकता है। गौरतलब है कि पिछले साढ़े 8 साल में बगैर प्रमोशन 75 हजार कर्मचारी रिटायर्ड हो गए हैं।

उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट ने अप्रैल 2016 में राज्य सरकार के पदोन्नति नियम को निरस्त कर दिया था, तभी से अधिकारी-कर्मचारियों के प्रमोशन नहीं हो पा रहे हैं। इसको लेकर सरकारी स्तर पर कई प्रयास भी हुए लेकिन यह सब कागजी ही रहे। साल-दर-साल कर्मचारी रिटायर होते रहे लेकिन कोई रास्ता नहीं निकल सका। सरकार ने बीच का रास्ता निकालने का प्रयास किए। लेकिन प्रयास सफल नहीं हो सके। कानूनी राय भी ली गई लेकिन मामला सुप्रीमकोर्ट में होने के कारण मामला अटक गया। कर्मचारियों की नाराजगी को देखते हुए वर्ष 2018 में रिटायरमेंट एज 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई। इससे कर्मचारियों का रिटायरमेंट तो रुक गया लेकिन इन दो सालों में भी प्रमोशन का कोई रास्ता नहीं निकाला जा सका। अब सरकार ने पदोन्नति पर लगी रोक हटाने 36:64 का फार्मूला तैयार किया है।

रोक हटाने की दिशा में कार्रवाई तेज

मप्र सरकार ने कर्मचारियों के प्रमोशन पर साढ़े 8 साल से लगी रोक हटाने की दिशा में कार्रवाई तेज कर दी है। सामान्य प्रशासन विभाग सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था (सपाक्स) और मप्र अनुसूचित जाति एवं जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ (अजाक्स) के पदाधिकारियों के साथ बैठकें कर पदोन्नति से रोक हटाने को लेकर विचार-विमर्श कर रहा है। मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सरकार ने पदोन्नति पर लगी रोक हटाने को लेकर 36:64 प्रतिशत का फार्मूला तैयार किया है। इसके अनुसार पदोन्नति वाले कुल पदों में से 36 प्रतिशत पद अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों के लिए और 64 प्रतिशत पद सामान्य व अन्य पिछड़ा वर्ग के अधिकारी-कर्मचारियों के लिए आरक्षित रहेंगे। पदोन्नति वाले कुल पदों में से 36 प्रतिशत पर ही एससी-एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन मिलेगा। वे शेष बचे 64 प्रतिशत पदों पर पदोन्नत नहीं होंगे। सरकार विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक से पहले यह भी देखेगी की यदि पदोन्नत होने वाले कुल पदों में से 36 प्रतिशत पदों पर एससी- एसटी के कर्मचारी पदस्थ हैं, तो उन्हें पदोन्नति में शामिल नहीं किया जाएगा। सरकार ने प्रदेश में एससी की 15 प्रतिशत आबादी व एसटी की 21 प्रतिशत आबादी के आधार पर 36:64 प्रतिशत का फार्मूला तैयार किया है। मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सरकार ने सपाक्स और अजाक्स को स्पष्ट कर दिया है कि यदि उन्हें पदोन्नति में 36:64 प्रतिशत का फार्मूला मान्य हो, तो ही इस मुद्दे पर आगे बात होगी, इसके अलावा सरकार के पास अन्य कोई विकल्प नहीं है। यदि उन्हें यह फार्मूला मान्य नहीं है, तो फिर सरकार आगे नहीं बढ़ेगी। पूर्व की तरह सुप्रीम कोर्ट में मामला चलता रहेगा और कोर्ट का आदेश सरकार को मान्य होगा।


अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं

अपर मुख्य सचिव सामान्य प्रशासन विभाग संजय दुबे का कहना है कि पदोन्नति पर रोक हटाने के संबंध में सपाक्स और अजाक्स के पदाधिकारियों के साथ बैठक हुई है। अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं हुआ है। फिर सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखेगी सरकार अधिकारियों का कहना है कि यदि जीएडी और सपाक्स अजाक्स के बीच पदोन्नति पर लगी रोक हटाने पर सहमति बनती है, तो इस मुद्दे पर पहले मुख्य सचिव और फिर मुख्यमंत्री के साथ सपाक्स व अजाक्स के पदाधिकारियों की बैठक होगी। इसके बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष प्रस्तुत कर पदोन्नति पर लगी रोक हटाने की अनुमति मांगेगी। गौरतलब है कि हाईकोर्ट जबलपुर ने अप्रैल, 2016 में पदोन्नति में आरक्षण के 2002 के नियम समाप्त करने का आदेश दिया। तत्कालीन शिवराज सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ मई, 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार देकर पदनाम देने को लेकर 9 दिसंबर, 2020 को उच्च स्तरीय समिति गठित की। पदोन्नति का फार्मूला तय करने के लिए 13 सितंबर, 2021 को मंत्री समूह गठित किया गया। मंत्री समूह की सिफारिशें लागू नहीं की गईं।


बिना प्रमोशन 75 हजार कर्मचारी रिटायर्ड

मप्र हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल, 2016 को मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) अधिनियम-2002 खारिज कर दिया था। कोर्ट ने 2002 के बाद पदोन्नति पाने वाले आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को पदावनत करने का आदेश दिया था। राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ 12 मई, 2016 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। पदोन्नति के इंतजार में साढे 8 साल में 75 हजार से ज्यादा अधिकारी-कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। जो नौकरी में हैं, वे हताश और निराश हैं। प्रदेश में पदोन्नति के लिए पात्र कर्मचारियों की संख्या 4 लाख से ज्यादा है। तत्कालीन शिवराज सरकार ने अधिकारी-कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार देकर पदनाम देने को लेकर दिसंबर, 2020 में उच्च स्तरीय समिति का गठन किया। समिति की रिपोर्ट पर कई विभागों में कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार दिया गया। फिर सरकार ने पदोन्नति का फार्मूला तय करने के लिए सितंबर, 2021 में मंत्री समूह का गठन किया। मंत्री समूह ने इस संबंध में सरकार को रिपोर्ट दे दी थी, लेकिन उसका क्रियान्यवयन नहीं किया जा सका।