पाकिस्तान में शरिया कानून लागू कराने टीटीपी ने किया हक्कानी से समझौता
इस्लामाबाद। अफगानिस्तान में साल 2021 में सत्ता में आने के बाद से ही तालिबानी सरकार और पाकिस्तान के बीच रिश्ते बिगड़ते दिखे हैं। पाकिस्तान ने पिछले करीब एक साल में दो बार अफगानिस्तान पर हवाई हमले किए। वहीं तालिबानी ने भी पाकिस्तान पर भारी हथियारों से हमला करके कई पाकिस्तानी सैनिकों को मारने का दावा किया है। तालिबान के सहयोगी आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान ने न केवल पाकिस्तान के सैकड़ों सैनिकों को मारा है, बल्कि कई सैन्य ठिकानों को भी विस्फोटकों से उड़ा दिया है।
पाकिस्तान की शहबाज सरकार ने खुद ही माना है कि अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार आने के बाद टीटीपी के हमलों में भारी तेजी आई है। पाकिस्तान ने तालिबान को सत्ता में लाने के लिए मदद की थी लेकिन अब वही उसके लिए भस्मासुर बन गए हैं। इस बीच मीर अली समझौते के खुलासे ने पाकिस्तानियों के होश उड़ा दिए हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान में सत्ता में वापसी से पहले तालिबान ने टीटीपी आतंकियों और अलकायदा के साथ एक डील की थी। इसे मीर अली समझौता नाम दिया गया था।
इस समझौते के तहत तालिबान ने शपथ ली थी कि अगर उनकी अफगानिस्तान में जीत हो जाती है तो वह टीटीपी और अन्य विदेशी लड़ाकुओं को पाकिस्तान में कब्जा करके वहां शरिया कानून लागू कराने के उनके जिहाद में मदद करेगा। रिपोर्ट के मुताबिक टीटीपी ने यह डील तालिबानी गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी के साथ की है। यह वही हक्कानी है जो पाकिस्तानी आईएसआई का साथ देते रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक मीर अली समझौते पर टीटीपी, अलकायदा के कमांडर, हाफिज गुल बहादुर जैसे लोगों और संगठनों ने हस्ताक्षर किए हैं। इस मुलाकात के दौरान हाफिज गुल बहादुर गुट ने मुल्ला याकूब को मीर अली समझौते का दस्तावेज दिखा दिया। पाकिस्तान की सरकार पिछले तीन साल से आरोप लगा रही है कि तालिबान से पाकिस्तान में सक्रिय टीटीपी आतंकियों को मदद मिल रही है। तालिबान ने इन आरोपों को खारिज किया है। तालिबान ने यह भी कहा है कि उसकी जमीन का इस्तेमाल किसी तीसरे देश के खिलाफ नहीं होने दिया जाएगा। वहीं मीर अली समझौता यह दिखाता है कि तालिबान सक्रिय रूप से टीटीपी को सपोर्ट कर रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक इस समझौते पर इसलिए हस्ताक्षर हुआ था क्योंकि टीटीपी के आतंकियों ने अन्य विदेशी आतंकियों के साथ मिलकर तालिबान के लिए अफगानिस्तान की अशरफ गनी सरकार, अमेरिका और नाटो सेना से जंग लड़ी थी।


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