एक आदमी बस में रोजाना ही यात्रा करता था। वह बस में केले खाता और छिलके को खिड़की से फेंक देता। एक दिन एक भाई ने कहा, भाई! सड़क पर छिलके डालना उचित नहीं है। दूसरे फिसलकर गिर पड़ते हैं। छिलकों को एक ओर डालना चाहिए। उसने कहा, अच्छी बात है। दूसरे दिन की बात है। पूर्व दिन वाले दोनों यात्री एक ही बस में बैठे हुए थे। एक ने केले छीले, खाए और छिलके डाल दिए। सड़क पर नहीं, अन्यत्र कहीं। साथी ने कहा, धन्यवाद! कल जो मैंने कहा, उसे तुमने मान लिया। आज छिलके सड़क पर नहीं फेंके। उसने कहा, सड़क पर तो नहीं फेंके, पर मेरे पास जो दूसरा यात्री बैठा था, उसकी जेब में चुपके से छिलके डाल दिए। सड़क पर उन्हें डालने की नौबत ही नहीं आई।  
हर आदमी ऍसे ही समस्या को दूसरों की जेब में डालता जाता है और यह मान लेता है कि समस्या का समाधान हो गया। समस्या सुलझती नहीं। एक समस्या सुलझती है, तो दूसरी उलझ जाती है। समस्या के समाधान का सही मार्ग है-भावनाओं पर ध्यान देना। जो भी काम किया जाता है, उसको करने से पूर्व यह सोचना होगा कि मैं यह काम शरीर की सुविधा के लिए कर रहा हूं, पर इससे कहीं मन की समस्या उलझ तो नहीं रही है? कहीं भावना की समस्या गहरी तो नहीं होती जा रही है? हम तीनों समस्याओं पर एक साथ ध्यान दें। जब तक शरीर की समस्या, मन की समस्या और भावना की समस्या पर समवेत रूप में ध्यान नहीं देंगे, तब तक समाधान नहीं मिलेगा।