तंकवाद हमारे देश और समाज के लिए बड़ा खतरा बना हुआ है। इसी अंदरूनी आतंकवाद को खत्‍म करने के लिए 21 मई को आतंकवाद विरोधी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। 21 मई को इसलिए क्‍योंकि 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्‍या कर दी गई थी। तभी से हमारे देश में आतंकवाद विरोधी दिवस मनाया जाने लगा। इस दिवस को राष्‍ट्रीय एकता और सद्भाव को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य से मनाया जाता है। आतंकवाद विरोधी दिवस (Anti Terrorism Day 2024) राष्ट्रीय सद्भाव को बढ़ावा देने, आतंकवाद को कम करने और सभी जातियों, पंथों आदि के लोगों के बीच एकता को बढ़ावा देने के मकसद से मनाया जाता है। इस दिन आम लोगों के बीच एक संदेश देने का प्रयास किया जाता है कि कैसे आतंकवाद देश को नुकसान पहुंचा रहा है। बता दें कि यह दिन आतंकवादियों द्वारा की गई हिंसा के बारे में हमें जागरूक करने के साथ-साथ युवाओं को आतंकवाद और मानव जीवन पर पड़े इसके गलत प्रभाव की जानकारी देते हुए मनाया जाता है।

   इस दिन ही क्‍यों मनाते हैं आतंकवाद विरोधी दिवस

आपको बता दें कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर गए थे। जहां आतंकवादी संगठन ने उनकी हत्‍या कर दी थी। उनकी हत्‍या आतंकवादी संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) ने ह्यूमन बम या सुसाइड बम के जरिए की थी। उनके हत्‍या के बाद वीपी सिंह सरकार ने 21 मई को आतंकवाद विरोधी दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। तभी से इस दिन सरकारी कार्यालयों और अन्य सार्वजनिक संस्थानों में आतंकवाद को खत्म करने की शपथ ( Anti Terrorism pledge) दिलाई जाती है। इस दिन का महत्व बताने सभी संचार माध्‍यमों प्रिंट, डिजिटल, टीवी और सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म भी जागरूक किया जाता है।

   ये दिलाई जाती है शपथ

बता दें कि आतंकवाद विरोधी दिवस (Anti Terrorism Day 2024) के दिन 21 मई को शपथ दिलाई जाती है। इस दौरान हम भारतवासी अपने देश की अहिंसा एवं सहनशीलता की परंपरा में दृढ़ विश्वास रखते हैं और निष्ठापूर्वक शपथ लेते हैं कि हम सभी प्रकार के आतंकवाद और हिंसा का डटकर सामना करेंगे। हम मानव जाति के सभी वर्गों के बीच शांति, सामाजिक सद्भाव तथा सूझबूझ कायम करने और मानव जीवन मूल्यों को खतरा पहुंचाने और विघटनकारी शक्तियों से लड़ने की भी शपथ लेते है।

   1950 के दशक में आतंकवाद की शुरुआत

हमारे देश की सीमाओं से लगातार घुसपैठी अंदर आने की कोशिश करते हैं। ये कई बार कामयाब भी हुए हैं। इसके अलावा भी हमारे देश के अंदर ही नक्‍सलवाद के रूप में एक आतंकी संगठन पनप रहा है। यह हमारे देश की बड़ी समस्‍याओं में से एक है। इतिहास की बात करें तो आतंकवाद (Anti Terrorism Day 2024) शब्द की उत्पत्ति फ्रांसीसी क्रांति के दौरान हुई थी। तब जब वर्ष 1793-94 में वहां आतंक का राज आया था। जानकारी यह भी मिलती है कि विश्‍वभर में आतंकवाद का मूल रूप से आरंभ 1950 के दशक से माना जाता है। उस समय वामपंथ के उत्थान के बाद से आतंकवाद को देखा जा सकता है। इसकी जद में यूरोप सहित संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, जर्मनी और भारत जैसे कई देश आए थे। तभी से भारत भी इसका दंश झेल रहा है। भारत में नक्सलवाद और माओवाद के रूप में आतंकवाद का स्वरूप काफी लंबे अरसे से उपस्थित रहा है।

   ये आतंकवाद हमारे देश के लिए खतरा

बता दें कि भारतीय संसद ने साल 1987 में आतंकवादी (Anti Terrorism Day 2024) और विघटनकारी क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम पास किया था। इस अधिनियम में कहा है कि जो कोई भी सरकार को डराने या लोगों या लोगों के किसी भी समूह को आतंकित करने या उन्हें मारने की धमकी देता है या फिर नकारात्मक रूप से प्रभावित करने के उद्देश्य से बम, डायनामाइट या अन्य विस्फोटक पदार्थ, ज्वलनशील पदार्थ या घातक हथियारों समेत इसी तरह के पदार्थों का प्रयोग करता है तो उस अपराध को आतंकवादी कार्य माना जाएगा। वर्ष 2002 में पारित आतंकवाद निवारण अधिनियम (POTA) के अंतर्गत आतंकवाद के वित्तीयन को भी आतंकवादी कार्य माना गया है।

   आतंकवाद पर नियंत्रण के लिए उठाए कदम

बता दें कि भारत विश्व में आतंकवाद (Anti Terrorism Day 2024) से सबसे अधिकि प्रभावित देशों में से एक देश है। इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस की मानें तो वर्ष 2018 भारत आतंकवाद से 7वां सर्वाधिक प्रभावित देश था। आजादी के बाद से ही भारत में कई आतंकवादी घटनाएं होती रही हैं। एक रिपोर्ट में वर्ष 2001 से 2018 के मध्य भारत में आतंकी हमलों के कारण 8000 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। इन घटनाओं पर रोक लगाने के लिए भारत सरकार ने कई कदम उठाए हैं।

   ये बनाए गए कानून

आतंकवादी (Anti Terrorism Day 2024) गतिविधियों से निपटने के लिए भारतीय संसद ने वर्ष 1967 में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) पारित किया था। इसे और प्रभावी बनाने के लिए वर्ष 2004 में इसमें संशोधन भी किया गया। भारतीय संसद में साल 1987 में आतंकवादी एक्टिविटी पर लगाम लगाने आतंकवादी और विघटनकारी क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (TADA) पारित किया गया। साल 2002 में भारतीय संसद में आतंकवाद  निवारण अधिनियम (POTA) भी पारित किया था इसका उद्देश्य भी आतंकवादी गतिविधियों से निपटना है। मुंबई में हुए कुख्यात 26/11 आतंकवादीहमले के बाद केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) का गठन किया। इसके साथ ही अन्‍य खुफिया एजेंसियों का गठन किया है। जो कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद से निपटने के लिए कार्य कर रही है। इनमें रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW), इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) आदि संस्थाएं प्रमुख हैं। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड  का निर्माण भी किया। इसका उद्देश्य कई सुरक्षा एजेंसियों के डेटाबेस को आपस में जोड़ना है, ताकि ये सुरक्षा एजेंसियां बेहतर सामंजस्य के साथ कार्य करें। भारत सरकार ने आतंकवादी गतिविधियों से निपटने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड नामक एक अर्ध सैनिक बल का गठन भी किया है। इसके अलावा फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स नामक अंतर्राष्ट्रीय संगठन का भी सदस्य है, जो मुख्य रूप से धन शोधन व आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने का कार्य करती है।

   देश की पहली आतंकवादी घटना का जन्‍म

इतिहास में जब हम आतंकवादी घटनाओं की जानकारी खोजते हैं तो 24 मई 1967 की घटना सामने आती है। 24 मई 1967 को पश्चिम बंगाल का नक्सलबाड़ी गांव है, जहां एक किसान जमींदार के खेत में कड़ी धूप में फसल काट रहा था। तभी जमींदार खेत में पहुंचा। किसान ने जमींदार से कुछ मजदूरी बढ़ाने की बात कही। साथ में अपनी तकलीफ भी बताई। जमींदार ने अपनी बंदूक निकाली और किसान पर गोली दाग दी। किसान की मौके पर ही मौत हो गई। ये खबर आसपास के खेतों में काम कर रहे किसानों के पास पहुंची। तभी सभी किसान एकत्रित हो गए और जमींदार नगेन चौधरी को पकड़ लिया। इसके बाद किसानों के द्वारा एक सभा बुलाई गई। जहां जमींदार को घसीटकर किसान ले गए। इस सभा के नेता थे कानू सान्याल। ये वही कानू सान्याल थे, जिन्हें पहला नक्सली माना जाता है। इस जनसभा खुली सुनवाई में कानू सान्‍याल ने जमींदार चौधरी को अपना जुर्म कुबूल करने का मौका दिया। नगेन चौधरी अपना जुर्म कुबूल करने की बजाय किसानों को गालियां देने लगा। तभी किसानों के बीच से एक व्‍यक्ति जिसकी हाईट 6 फीट 5 इंच के करीब थी, यह आदिवासी शख्स जिसका नाम जंगल संथाल था, खड़ा हुआ। इसने एक झटके में नगेन चौधरी का सिर धड़ से अलग कर दिया। इसी घटना को नक्‍सलवाद की पहली चिनगारी के रूप में माना जाता है। नक्‍सलवाद की शुरुआत नक्सलबाड़ी गांव से शुरू होने कारण ही इसे नक्सलवाद नाम मिला। किसानों और मजदूरों का ये विरोध कुछ महीने बाद ही हिंसक नक्सली आंदोलन में बदल गया जो 5 से ज्‍यादा दशकों से देश की आंतरिक सुरक्षा पर खतरा बना हुआ है।